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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन: द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार
और जो वस्तु पहले से विद्यमान न हो, उसके उत्पाद
असत्-उत्पाद कहते हैं ।
द्रव्यार्थिकनय से प्रत्येक वस्तु का सत् उत्पाद होता है और पर्यायार्थिकनय से प्रत्येक वस्तु का असत् उत्पाद होता है। कार्य तो एक ही हुआ है; उसे ही द्रव्यार्थिकनय से सत्-उत्पाद और पर्यायार्थिकनय से असत् - उत्पाद कहते हैं।
इस गाथा के भाव को आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं"निर्दोष लक्षणवाला, अनादिनिधन, पूर्वकथित यह द्रव्य अपने सत्स्वभाव में उत्पन्न होता है । द्रव्य का यह उत्पाद द्रव्यार्थिकनय से कथन करते समय सद्भावसंबंद्ध ही है और पर्यायार्थिकनय से कथन करते समय असद्भावसंबंद्ध ही है ।
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अब इसी बात को विशेष समझाते हैं।
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तथाहि - यदा द्रव्यमेवाभिधीयते न पर्यायास्तदा प्रभवावसानवर्जिताभिर्यौगपद्यप्रवृत्ताभिर्द्रव्यनिष्पादिकाभिरन्वयशक्तिभिः प्रभवावसानलाञ्छना क्रमप्रवृत्ताः पर्यायनिष्पादिका व्यतिरेकव्यक्तीस्वास्ता: संक्रामतो द्रव्यस्य सद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भाव: हेमवत् ।
तथाहि - यदा हेमैवाभिधीयते नाङ्गदादाय: पर्यायास्तदा हेमसमानजीविताभिर्यौगपद्यप्रवृत्ताभिर्हेमनिष्पादिकाभिरन्वयशक्तिभिरङ्गदादिपर्यायसमानजीविताः क्रमप्रवृत्ता अङ्गदादिपर्यायनिष्पादिका व्यतिरेकव्यक्तीस्तास्ताः संक्रामतो हेम्नः सद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः ।
यदा तु पर्याय एवाभिधीयन्ते न द्रव्यं तदा प्रभवावसानलाञ्छनाभिः क्रमप्रवृत्ताभि: पर्यायनिष्पादिकाभर्व्यतिरेकव्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिः प्रभवावसानवर्जिता यौगपद्यप्रवृत्ता द्रव्यनिष्पादिका अन्वयशक्तिः संक्रामतो द्रव्यस्यासद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भाव: हेमवदेव ।
तथाहि यदाङ्गदादिपर्याया एवाभिधीयन्ते न हेम, तदाङ्गदादिपर्यायसमानजीविताभि: क्रमप्रवृत्ताभिरङ्गदादिपर्यायनिष्पादिकाभिर्व्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिर्हेमसमानजीविता यौगपद्यप्रवृत्ता हेम निष्पादिका अन्वयशक्तिः संक्रामतौ हेम्नोऽसद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः ।
जब द्रव्य की चर्चा होती है, पर्यायों की नहीं; तब उत्पत्ति-विनाश रहित, युगपत् प्रवर्तमान, द्रव्य को उत्पन्न करनेवाली अन्वय शक्तियों के द्वारा; उत्पत्ति-विनाशलक्षणवाली, क्रमशः प्रवर्त्तमान, पर्यायों की उत्पादक उन-उन व्यतिरेक व्यक्तियों को प्राप्त होनेवाले द्रव्य को सोने की भाँति सद्भावसंबंद्ध ही उत्पाद है।
वह इसप्रकार है कि जब सोने की चर्चा होती है; बाजूबंद आदि पर्यायों की नहीं; तब सोने के समान जीवित, युगपद् प्रवर्तमान, सोने की उत्पादक अन्वय-शक्तियों द्वारा, बाजूबंद आदि पर्यायों के समान जीवित ( उपस्थित), क्रमशः प्रवर्त्तमान, बाजूबंद आदि पर्यायों की उत्पादक उन-उन व्यतिरेक व्यक्तियों को प्राप्त होनेवाले सोने का सद्भावसंबंद्ध ही उत्पाद