SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार २२९ इसप्रकार इस गाथा में यही कहा गया है कि प्रत्येक पदार्थका अस्तित्व अर्थात् सत्ता गुण अपने-अपने में है; जिसे हम अवान्तरसत्ता या स्वरूपास्तित्व भी कहते हैं। ___ जिसप्रकार भारतीय मुद्रा की इकाई रुपया है। पैसों का जो भेद है, वह रुपये के अन्तर्गत ही है; इसीकारण ५० पैसे के सिक्के पर १/२ रुपया लिखा रहता है। ___ उसीप्रकार स्वरूपास्तित्व या अवान्तरसत्ता जैनदर्शन की इकाई है। द्रव्य-गुण-पर्याय के जो भेद हैं; वे इसके अन्तर्गत ही आते हैं। महासत्ता का दूसरा नाम सादृश्यास्तित्व भी है; जो अपने नाम से ही यह सूचित करता है कि यह सत्ता सभी में समानता के आधार पर ही मानी गई है। तात्पर्य यह है कि सभी द्रव्यों का अस्तित्व समान ही है; इसकारण सभी महासत्ता के अन्तर्गत आ जाते हैं। अथ सर्वथाऽभावलक्षणत्वमतदभावस्य निषेधयति - जं दव्वं तं ण गुणो जो विगुणो सो ण तच्चमत्थादो। एसो हि अतब्भावो णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो।।१०८॥ यह एकता उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से है और स्वरूपास्तित्व के अन्तर्गत द्रव्यगुण-पर्याय के जो भेद किये जाते हैं; वे सब अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय के अन्तर्गत आते हैं। तात्पर्य यह है कि सभी द्रव्यों की एकता असद्भूत है, उपचरित है और एक द्रव्य में भेद करना सद्भूत है, अनुपचरित है; इसलिए सादृश्यास्तित्व के आधार पर अपनी सत्ता के समान अन्य सभी की सत्ता स्वीकार करते हुए अपना अपनापन अपने स्वरूपास्तित्व में स्थापित करना ही उचित है। प्रश्न - सभी द्रव्यों की एकता उपचरित-असद्भूत और एक द्रव्य में भेद करना अनुपचरित-सद्भूत क्यों है, कैसे है ? उत्तर – सादृश्यास्तित्व के आधार पर की गई विभिन्न द्रव्यों की एकता वास्तविक नहीं है; इसलिए असद्भूत है और वे सभी द्रव्य एकक्षेत्रावगाही नहीं हैं; इसलिए उनमें परस्पर दूर का संबंध होने से उपचरित है। एकवस्तु में होनेवाले द्रव्य, गुण, पर्याय के भेद वास्तविक हैं; इसलिए सद्भूत हैं और वे एकक्षेत्रावगाही हैं; इसलिए अनुपचरित हैं। वास्तविक बात यह है कि भिन्न-भिन्न द्रव्यों में सहशता के आधार पर जो एकता स्थापित
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy