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गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
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( हरिगीत )
सत् द्रव्य सत् गुण और सत् पर्याय सत् विस्तार है ।
तद्रूपता का अभाव ही तद्-अभाव अर अतद्भाव है ॥ १०७॥
प्रवचनसार
सत् द्रव्य, सत् गुण और सत् पर्याय- इसप्रकार सत्ता गुण का विस्तार है। इनमें जो उसका अभाव अर्थात् उसरूप होने का अभाव है; वह तद्-अभाव अर्थात् अतद्भाव है ।
इस गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं - “जिसप्रकार एक मोतियों की माला हार के रूपमें, धागों के रूप में और मोती के रूप में - इसप्रकार तीन प्रकार से विस्तारित की जाती है। उसीप्रकार एक द्रव्य का सत्ता गुण सत् द्रव्य, सत् गुण और सत् पर्याय- इसप्रकार तीन प्रकार से विस्तारित किया जाता है ।
यथा चैकस्मिन् मुक्ताफलस्त्रग्दाम्नि यः शुक्लो गुणः स न हारो न सूत्रं न मुक्ताफलं यश्च हारः सूत्रं मुक्ताफलं वा स न शुक्लो गुण इतीतरेतस्य यस्तस्याभाव: स तदभावलक्षणोऽतद्भावोऽन्यत्वनिबन्धनभूतः ।
तथैकस्मिन् द्रव्ये यः सत्तागुणस्तन्न द्रव्यं नान्यो गुणो न पर्यायो यच्च द्रव्यमन्यो गुण: पर्यायो वा सन सत्तागुण इतीतरेतरस्य यस्तस्याभाव: स तदभावलक्षणोऽतद्भावोऽन्यत्वनिबन्धनभूतः ।। १०७।।
जिसप्रकार एक मोतियों की माला का सफेदी गुण; सफेद हार, सफेद धागे और सफेद मोती के रूप में तीन प्रकार से विस्तारित किया जाता है। उसीप्रकार एक द्रव्य का सत्ता गुण सत् द्रव्य, सत् गुण और सत् पर्याय - ऐसे तीन प्रकार से विस्तारित किया जाता है ।
जिसप्रकार एक मोतियों की माला में जो सफेदी नामक गुण है; वह हार नहीं है, धागा नहीं है, मोती नहीं है और जो हार, धागा या मोती है, वह सफेदी गुण नहीं है - इसप्रकार एकदूसरे में जो उसका अभाव अर्थात् उसरूप होने का अभाव है, वह तद्-अभाव लक्षण अतद्भाव है; जो कि अन्यत्व का कारण है ।
उसीप्रकार एक द्रव्य में जो सत्ता गुण है; वह द्रव्य नहीं है, अन्य गुण नहीं है या पर्याय नहीं है और जो द्रव्य, अन्य गुण या पर्याय है, वह सत्ता गुण नहीं है - इस प्रकार एक-दूसरे में जो तद्रूप होने का अभाव है, वह तद्-अभाव लक्षण अतद्भाव है, जो कि अन्यत्व का कारण है । "
आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति टीका में पहले तो उक्त उदाहरण के माध्यम से ही बात को स्पष्ट करते हैं; किन्तु बाद में उसे सिद्ध परमात्मा पर भी घटित करके बताते हैं।