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तो यह गया है कि उत्पादादि पर्यायों के ही हैं। ऐसी स्थिति में क्षणभेद कैसे हो सकता है ? अब इस बात को सोदाहरण विस्तार से समझाते हैं -
प्रवचनसार
जिसप्रकार कुम्हार, दण्ड, चक्र, चीवर और डोरी द्वारा किये जानेवाले संस्कार की उपस्थिति में जो रामपात्र का जन्मक्षण होता है, वही मिट्टी के पिण्ड का नाशक्षण होता है और वही दोनों कोटियों में रहनेवाले मिट्टीपन का स्थितिक्षण होता है ।
इसीप्रकार अंतरंग और बहिरंग साधनों द्वारा किये जानेवाले संस्कारों की उपस्थिति में जो उत्तरपर्याय का जन्मक्षण होता है, वही पूर्वपर्याय का नाशक्षण होता है और वही दोनों कोटियों में रहनेवाले द्रव्यत्व का स्थितिक्षण होता है ।
जिसप्रकार रामपात्र, मिट्टी का पिण्ड और मिट्टीपन में उत्पाद - व्यय और ध्रौव्य पृथक्पृथक् रहते हुए भी त्रिस्वभावस्पर्शी मिट्टी में वे सभी एकसाथ एकसमय में ही देखे जाते हैं; यथैव च वर्धमानपिण्डमृत्तिकात्ववर्तीन्युत्पादव्ययध्रौव्याणि मृत्तिकैव न वस्त्वन्तरं; तथैवोत्तरप्राक्तनपर्यायद्रव्यत्ववर्तीन्यत्युत्पादव्ययध्रौव्याणि द्रव्यमेव न खल्वार्थान्तरम् ।। १०२ ।। अथ द्रव्यस्योत्पादव्ययध्रौव्याण्यनेकद्रव्यपर्यायद्वारेण चिन्तयति -
पाडुब्भवदिय अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो ।
दव्वस्स तं पि दव्वं णेव पणट्टं ण उप्पण्णं ।। १०३ ।। प्रादुर्भवति चान्यः पर्यायः पर्यायो व्येति अन्यः ।
द्रव्यस्य तदपि द्रव्यं नैव प्रणष्टं नोत्पन्नम् ।।१०३।।
उसीप्रकार उत्तरपर्याय, पूर्वपर्याय और द्रव्यत्व में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पृथक्-पृथक् होने पर भी त्रिस्वभावस्पर्शी द्रव्य में वे तीनों एकसाथ एक समय में ही देखे जाते हैं ।
जिसप्रकार रामपात्र, मिट्टी का पिण्ड और मिट्टीपन में रहनेवाले उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य मिट्टी ही हैं, अन्य वस्तु नहीं । उसीप्रकार उत्तरपर्याय, पूर्वपर्याय और द्रव्यत्व में रहनेवाले उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यत्व द्रव्य ही हैं; अन्य पदार्थ नहीं । "
आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति टीका में इस गाथा के भाव को स्पष्ट करते हुए ‘उत्पादव्यय-ध्रुवत्व का एक काल है' यह समझाने के लिए आत्मानुभूति पर्याय के उत्पाद, मिथ्यात्व परिणति के नाश तथा दोनों के आधारभूत आत्मद्रव्यत्व की अवस्थिति का उदाहरण देते हैं । साथ में टेढी अंगुली, ऋजुगति, क्षीणकषाय के अन्तिम समय में केवलज्ञान की उत्पत्ति के उदाहरणों से भी इस विषय को समझाते हैं ।
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देखो, यहाँ प्रत्येक पर्याय के जन्मक्षण की बात कही है। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक पर्याय की उत्पत्ति का क्षण सुनिश्चित है । जिस क्षण में जो पर्याय होनी है, उस समय वही