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प्रवचनसार
___ महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र में द्रव्य के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए तीन सूत्र लिखे हैं; जो इसप्रकार हैं - "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् । सद्रव्यलक्षणं । गुणपर्ययवद्रव्यं ।”
इनका अर्थ यह है कि सत् अर्थात् सत्ता द्रव्य का लक्षण है और वह सत्ता उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य से युक्त होती है तथा द्रव्य, गुण और पर्यायवाला होता है।
इह खलु यदनारब्धस्वभावभेदमुत्पादव्ययध्रौव्यत्रयेण गुणपर्यायद्वयेन च यल्लक्ष्यते तद्द्रव्यम्। तत्र हि द्रव्यस्य स्वभावोऽस्तित्वसामान्यान्वयः, अस्तित्वं हि वक्ष्यति द्विविधं, स्वरूपा-स्तित्वं सादृश्यास्तत्त्वं चेति । तत्रोत्पादः प्रादुर्भावः, व्ययः प्रच्यवनं, ध्रौव्यमवस्थितिः।
गुणा विस्तारविशेषाः, ते द्विविधा: सामान्यविशेषात्मकत्वात् । तत्रास्तित्वं नास्तिमेकत्वमन्यत्वं द्रव्यत्वं पर्यायत्वं सर्वगतत्वमसर्वगतत्वंसप्रदेशत्वमत्वमप्रदेशत्वं मूर्तत्वमूर्तत्वं सक्रियत्वमक्रियत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं कर्तृत्वमकर्तृत्वं भोक्तृत्वमभोक्तृत्वममुरुलपुत्वं चेत्यादयः सामान्यगुणाः । अवगाहहेतुत्वं गतिनिमित्तता स्थितिकारणत्वं वर्तनायतनत्वं रूपादिमत्ता चेतनत्वमित्यादयो विशेषगुणाः।
पर्याया आयतविशेषाः, ते पूर्वमेवोक्ताश्चतुर्विधाः । न च तैरुत्पादादिभिर्गुणपर्यायैर्वा सह द्रव्यं लक्ष्यलक्षणभेदेऽपि स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव द्रव्यस्य तथाविधत्वादुत्तरीयवत्।
इसप्रकार हम देखते हैं कि यद्यपि महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र और जिन-प्रवचन के सार इस प्रवचनसार नामक ग्रन्थ में समागत परिभाषाओं में रंचमात्र भीअन्तर नहीं है; तथापि प्रवचनसार की एक ही गाथा में तत्त्वार्थसूत्र के तीनों सूत्रों के भाव को समाहित कर लिया गया है। इस गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
“स्वभावभेद किये बिना अर्थात् स्वभाव को छोड़े बिना उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य - इन तीनों तथा गुण और पर्याय - इन दोनों से लक्षित द्रव्य है। द्रव्य का स्वभाव अस्तित्व सामान्यरूप अन्वय है। अस्तित्व दो प्रकार का होता है - स्वरूपास्तित्व और सादृश्यास्तित्व।
प्रादुर्भाव (प्रगट होने) को उत्पाद, प्रच्युति (नष्ट होने) कोव्यय और अवस्थिति (कायम रहने) को ध्रौव्य कहते हैं।
विस्तारविशेष को गुण कहते हैं। वे दो प्रकार के होते हैं - सामान्यगुण और विशेषगुण। अस्तित्व, नास्तित्व; एकत्व, अन्यत्व; द्रव्यत्व, पर्यायत्व; सर्वगतत्व, असर्वगतत्व;