________________
ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन : शुभपरिणामाधिकार
११९
लगा है और उस वृक्ष को वह विक्षिप्त हाथी क्रोधित होकर झकझोर रहा है; जिसके कारण मधुमक्खियाँ उड़कर उक्त पुरुष को काटने लगी हैं; पर छत्ते के हिलने से उसमें से मधु (शहद) की एक-एक बूंद टपक रही है; जो भाग्य से शाखा से लटके उक्त पुरुष के मुख में गिर रही है; जिसे वह बड़े चाव से चाट रहा है।
नीचे कुएँ में विशाल अजगर पड़ा है; जो उक्त व्यक्ति को निगल जाने को आतुर है और अनेक अन्य सर्प भी उसे डसने को तैयार हैं। मृत्यु के मुख में पड़े हुए उक्त पुरुष को उक्त अनेक दु:खों के बीच मात्र मधुबिन्दु को चाटने के समान ही सुख है।
उक्त परिस्थितियों में फंसे हुए मरणोन्मुख उक्त पुरुष पर करुणा करके कोई देवता उसे बचाने के लिए हाथ बढ़ाता है और आग्रह करता है कि तुम मेरा हाथ कसकर पकड़ लो, मैं तुम्हें अभी इस महासंकट से बचा लेता हूँ; परन्तु वह अभागा पुरुष कहता है कि इस मधुर मधु की एक बूंद और चाट लूँ।
इसप्रकार वह एक-एक बूंद मधु के लोभ में तबतक वहीं लटका रहता है कि जबतक वह वृक्ष उखड़ नहीं जाता, उसकी डालियाँ टूट नहीं जातीं, वह पुरुष गिरकर विकराल अजगर के मुख में समा नहीं जाता, साँपों द्वारा डसा नहीं जाता; यहाँ तक कि महामृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाता। ___मधुबिन्दु के समान सांसारिक सुखों के लोभ में यह मनुष्य संसाररूपी भयंकर वन में मिथ्यात्वरूपी कुमार्ग में भटकता हुआ मृत्युरूपी हाथी के भय से शरीररूपी अंधे कुएँ में गिर
गया है। जिस आयुकर्मरूप वृक्ष की जड़ शुक्ल और कृष्ण पक्षरूपी चूहे काट रहे हैं - ऐसी आयुकर्मरूपी वृक्ष की शाखा पर लटक गया है।
शरीररूपी अंधे कुएँ के नीचे भाग में सशरीर निगल जाने को तैयार मिथ्यात्वरूपी अजगर और डस जाने को तैयार कषायोंरूपी सर्प हैं। मृत्युरूपी हाथी वृक्ष और उसकी शाखाओं को नष्ट करने के लिए जोर से झकझोर रहा है; जिससे जीवनांत होने का खतरा बढ़ गया है।
फिर भी वह मनुष्य विषय-सुखरूपी मधुबिन्दु के स्वाद