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________________ ११७ ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन : शुभपरिणामाधिकार अथैवमिन्द्रियसुखमुत्क्षिप्य दुःखत्वे प्रक्षिपति - सोक्खं सहावसिद्धं णत्थि सुराणं पि सिद्धमुवदेसे। ते देहवेदणट्ठा रमंति विसएसु रम्मसु ।।७१।। अभव्य अज्ञानियों के संदर्भ में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं कि - धम्म भोगणिमित्तं ण दु सो कम्मक्खयनिमित्तम् - अभव्यों का शुभभावरूप धर्म भोगों का निमित्त है, कर्मों के क्षय का निमित्त नहीं है। ____ मुनिवर श्री पद्मप्रभमलधारिदेव कृत नियमसार की तात्पर्यवृत्ति टीका में समागत ५९वें कलश में कहा गया है कि सुकृतमपि समस्तं भोगिनां भोगमूलं - समस्त शुभ कर्म भोगियों के भोग का मूल है । इसप्रकार यह सुनिश्चित है कि अधिकांश शुभभाव भोग सामग्री प्राप्त करानेवाले पुण्य को ही बाँधते हैं। भगवान की देशना के अतिरिक्त कोई धर्मसामग्री नहीं है क्योंकि एक देशनालब्धि को ही सम्यग्दर्शन का निमित्तरूप कारण माना गया है। ____ अतः ६ माह और ८ समय में अनंत जीवों में ६०८ जीव ही ऐसे रहे कि जिन्हें शुभोपयोग के फल में देशनालब्धि प्राप्त होती है; शेष को तो मिली न मिली बराबर ही है। आखिर उसे ही तो धर्मसामग्री कहा जायेगा कि जिससे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप धर्म की प्राप्ति हो। जिससे उक्त धर्म की प्राप्ति ही न हो और जो हमारे मानादिक के पोषण का निमित्त बने; उसे धर्मसामग्री भी तो कैसे कहा जा सकता है? तीसरी बात यह है कि वास्तविक धर्म की प्राप्ति के लिए पुण्योदय से प्राप्त होनेवाली सामग्री की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि निश्चयरत्नत्रय की प्राप्ति में पर के सहयोग की आवश्यकता नहीं; अपितु पर का त्याग ही अभीष्ट है। यह तो सुनिश्चित ही है कि निश्चयरत्नत्रय की प्राप्ति आत्मा के आश्रय से ही होती है, पर के आश्रय से भी नहीं, तो पर के सहयोग की बात ही कहाँ है ? ||६९-७०।। ६९ और ७०वीं गाथा में शुभभाव से इन्द्रियसुखों की प्राप्ति होती है - यह कहने के उपरान्त इस ७१वीं गाथा में यह बताते हैं कि शुभोपयोग के फल में प्राप्त होनेवाली देवगति में भी स्वाभाविक सुख नहीं है। वहाँ जो इन्द्रिय सुख है, वह सुख नहीं, दुख ही है।' - अब यह सिद्ध करते हैं। १. समयसार, गाथा २७५
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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