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पश्चात्ताप
पश्चात्ताप
(१५) जा रही वैदेही' वन में,
राम उद्विग्न हुये मन में। करें क्या समझ नहीं आवे, राम सोचे मन ही मन में ।।
(१६) उदर में था लवकुश जोड़ा,
तभी निर्जन वन में छोड़ा। प्रथम मैंने नाता तोड़ा,
आज उसने मुखड़ा मोड़ा।
(२०) विगतभव' में जो बाँधे कर्म,
वही फल देते इस भव में। किया होगा कोई अपराध, भयंकर मैंने गत भव में।।
(२१) उसी के फल में यह संयोग,
मिला होगा, न आपका दोष । 'करे सो भरे' यही है सत्य, आपका इसमें कोई न दोष ।।
(२२) अधिक क्या कहूँ, हुआ सो हुआ,
अरे जाने दो बीती बात । परन्तु अब ऐसा कुछ करें,
न होवे फिर ऐसा आघात ।।
नहीं मैं जाने ना दूंगा,
आज मैं उसको रोकूँगा। सगद्गद् बोले राम नरेश, रुंधा था कण्ठ गिरा निश्शेष ।।
(१८) न मैंने तुमको पहचाना,
मुझे शोकानल ने घेरा। सुनो अपराधी हूँ सीते!,
करो अपराध क्षमा मेरा ।।
आप न करें विकल्प विशेष,
सभी कुछ निश्चित हैं संयोग। बात बस इतनी है हे नाथ!,
मिला देते सत् का संयोग ।।
भेज देते आर्याश्रम में,
यही था क्या उपाय बस एक।
कहा इतना ही सीता ने,
नहीं अपराध तुम्हारा है। करमफल पूरव का जानो,
करमबल सबसे न्यारा है।। १. सीता २. गले से आवाज नहीं निकलना
१. पूर्वभव २. सत् का संयोग = सत्समागम ३. आर्यिकार्यों के आश्रय में १.४. असहाय अकेली भयंकर वन में छुड़वा देना