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पश्चात्ताप
एकसमीक्षात्मक अध्ययन
। दूसरी बात यह भी है कि समय के परिवर्तन के अनुसार यदि काव्य । के मानदण्डों में परिवर्तन हुआ है तो काव्य-रूप के मानदण्डों को बदलने की अपेक्षा नहीं है?
तीसरे, आधुनिक कवियों की रचनाओं को ध्यान से देखें तो उन्होंने पारंपरिक प्रतिमानों और धारणाओं को युगानुरूप तिलाञ्जलि देकर अपने चिन्तन के अनुकूल सायास संशोधन किया है। महाकाव्य और खण्डकाव्य सरीखी प्रबन्ध काव्य विषयक अवधारणा, जिसमें आद्यंत एक कथा अनुस्यूत हो, सर्गबद्धता, पद्यबद्धता और अन्य पारंपरिक लक्षणों सहित, बदल गई है।
डॉ. हरिचरण शर्मा के शब्दों में कहें तो "जीवन गत यथार्थ के दबाव, द्वन्द्व-अन्तर्द्वन्द्वमयी स्थितियों से उत्पन्न तनाव और उससे जुड़ी व्यथा-कथा की स्थिति में प्रबन्धकाव्य और महाकाव्य के पूर्व निर्धारित मानदण्डों का सुरक्षित रह पाना कठिन हो गया, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अलंकृति, रसात्मकता, सर्गबद्धता, इतिवृत्तात्मकता, वर्णन प्रियता, सानुबंधकथा आधुनिक प्रबंध काव्यों में या तो है ही नहीं, या अपने अलग चेहरे या भाग-भंगिमा के कारण नए लगते हैं।"
जाहिर है कि वर्तमान प्रबन्ध काव्यों में कथातत्त्व कम और चिन्तन अधिक है, वे किसी कथा के क्रमिक विकास को वर्णित न कर केवल कथा संकेत देते हैं। चारित्रिक अन्तःसंघर्ष प्रमुख हो रहा है और प्रत्येक घटना, स्थिति या प्रसंग का पुनर्मूल्यांकन हो रहा है।
डॉ. हरिचरण शर्मा ने प्रबन्ध रचना में आए बदलाव को इसप्रकार सूत्रित किया है -
“१. प्रबंध में या तो कथा है ही नहीं, है तो कथाभास है, ठोस कथा नहीं, घटनाओं के संकेत मात्र हैं।
२. प्रबंध सृष्टि के दौरान अपनाए गए कथानक यथार्थ स्थितियों से जुड़कर संघर्ष एवं आत्मसंघर्ष हो गए हैं।
३. नाटकीयता के विधान, यथार्थ के आग्रह और स्वप्न के स्थान पर सत्यानुभूति के कारण चारित्र भी यथार्थ एवं मानवीय हो गए हैं।
४. कथा की क्रमिकता की जगह भावों विचारों की एकरूपता प्रमुख हो गई है। सपाट कहानी की जगह प्रश्नाकुलता और विश्लेषण परकता सर्वोपरि हो गई है।
५. भाषा शैली में कल्पना के वैभव के साथ एक वैचारिकता दिखाई देती है।
६. नए प्रबन्धों में कथाधार भले ही पौराणिक ऐतिहासिक हो, किन्तु उसकी व्याख्या नई अर्थदीप्ति से युक्त है।"
प्रबन्धकाव्य के उपर्युक्त सूत्रों को आधार पर ही पश्चात्ताप : खण्डकाव्य के काव्यरूप का निर्धारण करना होगा। सामान्यता शताधिक छन्दों का लघुकाय काव्य प्रबन्ध काव्य के बने बनाए पैमाने से नापा नहीं जा सकता। बल्कि एक बारगी तो यह लगेगा कि यह कोई लम्बी कविता है, परन्तु इसमें आया घटनाओं का सांकेतिक परिवर्तन, घात-प्रतिघात हमें खण्डकाव्य के शिल्प की ओर ले जाते हैं।
आलोच्य कृति को मोटे तौर पर सात भागों में विभाजित कर सकते हैं । प्रथम भाग में मंगलाचरण एवं कथा परिचय, दूसरे भाग में सीता गमन से पूर्व राम का आत्मालाप, तीसरे भाग में सीता का दीक्षा पूर्व उद्बोधन, चौथे भाग में सीता का दीक्षा हेतु गमन, पाँचवें भाग में राम का पश्चात्तापात्मक चिन्तन, छठे भाग में राम के चिन्तन के निष्कर्ष और सातवें भाग में नान्दीपाठ है।
यद्यपि ये विभाग काल्पनिक हैं और कवि के द्वारा नहीं किए गए हैं, केवल अध्ययन की सुविधा हेतु ही बांछित है।
प्रस्तुत कृति में कोई ठोस कथा नहीं है, केवल घटनाओं के संकेत मात्र हैं। राम पूर्वदीप्ति शैली में घटित घटनाओं के चिन्तन-विश्लेषण