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________________ पदार्थ विज्ञान उत्पाद, व्यय और ध्रव इन तीनों को एक साथ न मानकर मात्र उत्पाद को, व्यय को या ध्रुव को ही माने तो कौनसे दोष आते हैं, वह बात १००वीं गाथा में बतलाई थी। ___ यहाँ, द्रव्य का ही उत्पाद, द्रव्य का ही व्यय और द्रव्य की ही ध्रुवता माने तो कौन से दोष आते हैं - यह बात १०१वीं गाथा में बतलाया है। इस (१०१वीं) गाथा में आचार्य देव को यह सिद्ध करना है कि उत्पाद, व्यय और ध्रुव ये द्रव्य से पृथक् कोई पदार्थ नहीं हैं, किन्तु द्रव्य में ही उन सबका समावेश हो जाता है। (1) यदि द्रव्य का ही उत्पाद मान लिया जाये तो व्यय और ध्रुव का समावेश द्रव्य में नहीं होगा। (2) यदि ध्रुव का ही व्यय मान लिया जाये तो उत्पाद और ध्रुव का समावेश द्रव्य में नहीं होगा। (3) यदि द्रव्य का ही ध्रौव्य मान लिया जाये तो उत्पाद और व्यय का समावेश द्रव्य में नहीं होगा। (4) इसलिये, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य द्वारा पर्याय आलंबित हो, जिससे यह सब एक ही द्रव्य हो। आचार्यदेव ने न्याय और युक्तिपूर्वक वस्तुस्वरूप सिद्ध किया है। द्रव्य स्वयं ही उत्पन्न नहीं होता, स्वयं ही नाश को प्राप्त नहीं होता और स्वयं ही ध्रुव नहीं रहता; किन्तु उनके अंश का उत्पाद है, अंश का व्यय है और अंश की ध्रुवता है। इसलिये वे उत्पाद व्यय और ध्रौव्य अंशों के (पर्यायों के) हैं और वे पर्यायें द्रव्य की ही हैं। इससे सब एक ही द्रव्य है।
SR No.008362
Book TitlePadartha Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size148 KB
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