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प्रथम संस्करण (१२ अगस्त १९८९) द्वितीय संस्करण (१५ फरवरी, २००७)
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मूल्य : पाँच रुपये
प्रकाशकीय
(प्रथम संस्करण) प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार परमागम की ९९ से १०१ तक तीन गाथाओं पर हुए सत्पुरुष श्रीकानजीस्वामी के प्रवचनों का संकलन एवं सम्पादन किया गया है। उपर्युक्त गाथाओं के प्रस्तुत प्रवचनों में जैनधर्म के मूलभूत सिद्धान्त उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य के द्वारा पदार्थविज्ञान विश्वव्यवस्था और वस्तुस्वातंत्र्य का विशद विवेचन हआ है। वस्तुव्यवस्था को यथार्थ समझने पर परद्रव्य के कर्तृत्व की मिथ्या मान्यता का समूल छेदन-भेदन करने के लिए यह अनुपम कृति है।
आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह के इस मंगलमय अवसर पर कुन्दकुन्दाचार्य के सत्साहित्य का जितना भी अधिकतम प्रचार-प्रसार हो सके, अवश्य होना चाहिए।
यह भी हमारा परमसौभाग्य ही कहा जायगा कि नाना मत और परस्पर भिन्न-भिन्न विचार रखनेवाली सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज आचार्य कुन्दकुन्द के द्विसहस्राब्दी समारोह को मनाने में एकमत है और अपने-अपने स्तर पर सभी सक्रिय हैं।
इस अवसर पर जहाँ पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने कुन्दकुन्द शतक, आचार्य कुन्दकुन्द और उनके टीकाकार, आचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम जैसी कृतियाँ प्रकाशित कर एवं जैनपथ प्रदर्शक समिति ने आचार्य कुन्दकुन्द विशेषांक एवं समयसार विशेषांक जैसे वृहदाकार विशेषांक एवं मनीषियों की दृष्टि में समयसार जैसी कृतियाँ प्रकाशित कर कुन्दकुन्द के प्रति अपनी श्रद्धांजलि समर्पित की है, वहीं अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ने स्थानीय स्तरों पर अनेक छुट-पुट कार्यक्रमों के साथ केन्द्र द्वारा संचालित कुन्दकुन्द ज्ञानचक्र के माध्यम से भी कुन्दकुन्द के तत्त्वज्ञान की अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हो रही है। ___ इन सब अभिनन्दनीय कार्यों के लिए कार्यकर्ताओं को जितना भी धन्यवाद दिया जाय, थोड़ा है। कुन्दकुन्दवाणी का इसी प्रकार प्रचार-प्रसार होता रहे, बस यही मंगलकामना है।
- नेमीचन्द पाटनी महामंत्री, टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.)
(ii)
मुद्रक: प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर
(II)