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________________ क्या मुक्ति का मार्ग इतना सहज है? १११ करके कोई प्रतिक्रिया प्रगट किए बिना मुझे निस्वार्थ भाव से पुनः अपना लिया। यह कोई साधारण नारी का काम नहीं है। वह सचमुच महान है। वह मेरी पत्नी होकर भी अपने सद्गुणों से मेरे लिए श्रद्धेय बन गई है। समता में एक सुयोग्य पत्नी के सभी गुण विद्यमान हैं। किसी कवि ने सुयोग्य पत्नी के गुणों का बखान करते हुए ठीक ही कहा है - 'भोज्येषु माता सेवास दासी, कार्यष मंत्री रतौ च रम्भा। धर्मेऽनुकूला क्षमयाधरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीहि दुर्लभा ।। योग्य पत्नी पति को माता की भाँति स्नेह से भोजन कराती है, दासी की भाँति सेवा करती है और मधुरभाषी होती है। कार्यों में मंत्री की भाँति सही सलाह देती है तथा लौकिक सुखों में पत्नी का धर्म निभाती है, धर्मानुकूल रहती है। पृथ्वी के समान क्षमाशील होती है। - ऐसी छह गुणों से सम्पन्न पत्नी का मिलना सुलभ नहीं है; पर उपर्युक्त सभी गुण समता में कूट-कूट कर भरे हैं।" ___जीवराज ने आगे कहा - "कर्मकिशोर! तुझे भलीभाँति ज्ञात है कि मैं आजकल वीतरागी देव, निर्ग्रन्थ गुरु और अनेकांतमयी धर्म का कट्टर व परम भक्त हो गया हूँ। इसकी वजह यह नहीं कि उनकी कृपा से मेरे दुःख दूर हो गये; बल्कि समता ने जब मुझे देव के स्वरूप को समझाते समय सर्वज्ञता का स्वरूप समझाया और बताया कि सर्वज्ञता ही वीतराग धर्म प्राप्ति का प्रबल साधन है। इस अपेक्षा सर्वज्ञदेव ही धर्म के प्राण हैं। सच्चे देव की सर्वज्ञता की श्रद्धा से हमें वीतरागता रूप धर्म कैसे प्रगट होता है? राग-द्वेष कैसे कम होते हैं? तथा कषायें कैसे कृश होती हैं? और निराकुल सुख-शान्ति कैसे प्राप्त होती है? - यह सब समझाया तो मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गईं। - ऐसा मैंने कभी सोचा ही नहीं था। तीर्थंकर भगवान वीतरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी होते हैं - ऐसी परिभाषायें तो बचपन में पढ़ीं थीं; परन्तु उनकी श्रद्धा से अपनी आत्मा में सुख-शान्ति का स्रोत कैसे बहने लगता है? इसकी खबर मुझे नहीं थीऐसा किसी ने बताया ही नहीं। इस दृष्टि से समता मेरी गुरु भी बन गई। १. सुभाषित रत्न भाण्डारम् पृष्ठ ३५१, पद्य-२७ (56)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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