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________________ मूल में भूल किया ऐसा निमित्त का पक्षवाला आदमी पूछता है कि बिना निमित्त के उपादान अपना कार्य करने में बलहीन है । यदि निमित्त हो तो उपादान काम कर सकता है, गुरु हो तो शिष्य को ज्ञान होता है. सर्य हो तो कमल खिलता है, दो पैर हों तो आदमी चल सकता है; कहीं एक पैर से नहीं चला जाता। देखिये अकेला एक पैर काम नहीं कर सकता। जब एक पैर को दूसरे पैर की सहायता मिलती है, तब चलने का लाभ होता है, इसीप्रकार अकेला उपादान काम नहीं कर सकता, किन्तु जब उपादान और निमित्त दोनों एकत्रित होते हैं, तब कार्य होता है। उपादान का अर्थ है - आत्मा की शक्ति । जीव का सम्यग्दर्शन प्रकट करने में आत्मा की सच्ची समझ-स्वभाव की प्रतीति का होना, सो उपादान है और गुरु का उपदेश निमित्त है। जब उपादान स्वयं कार्यरूप परिणमन करता है, तब जो बाह्य संयोग होता है, वह निमित्त है। इसप्रकार उपादान-निमित्त की व्यवस्था है। अज्ञानियों का यह तर्क है कि यदि अनुकूल निमित्त नहीं मिलता तो उपादान का काम नहीं बनता और वे तत्संबंधी दृष्टान्त भी देते हैं। ये दोहे पं. बनारसीदास द्वारा रचे गये हैं। उन अज्ञानियों की ओर से स्वयं प्रश्न उपस्थित करके उनका उत्तर दिया है। ज्ञानीजन जानते हैं कि अज्ञानियों के क्या-क्या तर्क हो सकते हैं। ये दोहे अत्यन्त उच्च कोटि के हैं। इनमें वस्तुस्वभाव का बल बताया गया है। __ अज्ञानी यह मानता है कि कोई निमित्त हो तो उपादान का काम होता है और ज्ञानी यह जानता है कि मात्र वस्तु के स्वभाव से ही कार्य होता है, उसमें निमित्त की न तो कोई सहायता होती है और न कोई असर होता है, किन्तु उससमय जो बाह्य संयोग उपस्थित होते हैं. उन्हीं को निमित्त कह दिया जाता है; कार्य तो अकेला उपादान स्वयं करता है। शिष्य का प्रश्न - आप कहते हैं कि मात्र उपादान से ही काम होता मुल में भूल है, यदि यह सच हो तो बिना हवा जहाज क्यों नहीं चलता ? उपादान के होते हुए भी हवा के निमित्त के बिना क्या जहाज चल सकता है ? बिना हवा के अच्छे से अच्छा जहाज भी रुककर रह जाता है, इसीप्रकार सद्गुरु के उपदेश के बिना आत्मारूपी जहाज मोक्षमार्ग की ओर नहीं चल सकता। सद्गुरु का निमित्त हो तो आत्मारूपी जहाज सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूपी मुक्ति के मार्ग पर चल सकता है। इससे सिद्ध हुआ कि निमित्त हो तो उपादान काम करता है और निमित्त न हो तो उपादान बलहीन हो जाता है। अकेला आत्मा क्या कर सकता है ? यदि सद्गुरु हों तो मार्ग बतायें और आत्मा उस मार्ग पर चले। इसप्रकार निमित्त-उपादान एकत्रित हों तो आत्मा मोक्षमार्ग में चलता है। निमित्त के उपर्युक्त तर्क का उपादान की ओर से उत्तर देते हुए कहा है कि ज्ञान नैन किरिया चरण, दोऊ शिवमग धार । उपादान निश्चय जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार ।।३।। अर्थ :-सम्यग्दर्शनपूर्वक ज्ञानरूपी दो आँखें और वह ज्ञान में स्थिरता स्वरूप सम्यक् चारित्र की क्रियारूपी जो चरण वह दोनों मोक्षमार्ग को धारण करते हैं। जहाँ ऐसा निश्चय उपादान (मोक्षमार्ग) होता है, वहाँ निमित्तरूप व्यवहार होता ही है। सम्यग्दर्शनपूर्वक ज्ञान और ज्ञान में स्थिरतारूप सम्यक्चारित्र की क्रिया - ये दोनों मोक्षमार्ग को धारण करते हैं। जहाँ उपादानरूप निश्चय होता है. वहाँ निमित्तरूप व्यवहार होता ही है। अज्ञानी मानते हैं कि सद्गुरु का निमित्त और आत्मा का उपादान मिलकर मोक्षमार्ग है, किन्तु ज्ञानी जानते हैं कि 'ज्ञान नयन किरिया चरन' अर्थात् ज्ञानरूपी नेत्र मोक्षमार्ग को दिखाते हैं और चारित्र उसमें स्थिर होता है। इसप्रकार ज्ञान और चारित्र - दोनों मिलकर मोक्षमार्ग है (ज्ञान के कहने पर उसमें श्रद्धा भी आ जाती
SR No.008359
Book TitleMool me Bhool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size269 KB
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