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________________ मूल में भूल महामिथ्यात्वरूप सबसे बड़े दोष को अपने ऊपर ले लेते हैं। वीतराग शासन में परम सत्य वस्तु, स्वरूप से प्रकट है कि आत्मा के भाव में कर्म की शक्ति बिलकुल नहीं है, मात्र आत्मा का ही बल है। आत्मा सम्पूर्ण स्वाधीन है। अपनी स्वाधीनता से अपने चाहे जैसे भाव कर सकता है। आत्मा स्वयं जिस समय जैसा पुरुषार्थ करता है, तब वैसा ही पुरुषार्थ हो सकता है इसप्रकार की आत्मस्वाधीनता की समझ ही मिथ्यात्व के सबसे बड़े दोष को नाश करने का एकमात्र उपाय है। ___ अरे भाई ! तू आत्मा स्वतंत्र वस्तु है, तेरे भाव से तुझे हानि-लाभ है, कोई परवस्तु तुझे हानि-लाभ नहीं करती । जीव यदि इसप्रकार की यथार्थ प्रतीति करे तो वह स्वलक्ष्य से मुक्ति को प्राप्त करे; परन्तु यदि जीव अपने भाव को न पहचाने और यही मानता रहे कि पर निमित्त से निज को हानि-लाभ होता है तो उसका परलक्ष्य कदापि नहीं छूट सकता और स्व की पहचान भी कभी नहीं हो सकती, इसलिए वह संसार में चक्कर लगाया करता है। अत: उपादान और निमित्त - इन दोनों के स्वरूप को पहचानकर यह निश्चय करना चाहिए कि उपादान और निमित्त दोनों पृथक्-पृथक् पदार्थ हैं, कभी कोई एक-दूसरे का कार्य नहीं करते । इसप्रकार निश्चय करके निमित्त के लक्ष्य को छोड़कर अपने उपादान स्वरूप को लक्ष्य में लेकर स्थिर होना ही सुखी होने का - मोक्ष का उपाय है।२३। निमित्त का तर्क - उपादान तुम जोर हो, तो क्यों लेत अहार । पर निमित्त के योग सों, जीवत सब संसार ।।२४।। अर्थ :- निमित्त कहता है - हे उपादान ! यदि तेरा बल हो तो तू आहार क्यों लेता है ? संसार के सभी जीव पर निमित्त के योग से जीते हैं। हे उपादान ! इन कर्म इत्यादि को जाने दो। ये तो दृष्टि से दिखाई नहीं मूल में भून देते, किन्तु यह तो स्पष्ट दिखाई देता है कि आहार के निमित्त से तू जी रहा है। यदि तेरी शक्ति हो तो तू आहार क्यों लेता है ? बिना आहार के अकेला क्यों नहीं जीता ? अरे ! छठे गुणस्थान तक मुनिराज भी आहार लेते हैं, तब आहार के ही निमित्त से जी रहा है। क्या आहार के बिना मात्र उपादान पर जिया जा सकता है? सच तो ये है कि निमित्त ही बलवान है। इसप्रकार निमित्त पक्ष का वकील तर्क करता है। जो वकील होता है, वह अपने ही मुवक्किल की ओर से तर्क उपस्थित करता है। वह अपने विरोधी पक्ष के सच्चे तर्क को जानता हआ भी कभी उस तर्क को पेश नहीं करता। यदि वह विरोधी पक्ष की ओर से तर्क को उपस्थित करे तो वह वकील कैसे कहलायेगा? यहाँ निमित्त का वकील कहता है कि निमित्त की कुछ दहाइयाँ हैं, मात्र उपादान ही काम नहीं करता; इसलिए निमित्त की शक्ति का आधार भी स्वीकार करो। उपादान का उत्तर - जो अहार के जोग सों, जीवत है जगमाहिं । तो वासी संसार के, मरते कोऊ नाहिं।।२५।। अर्थ :- उपादान कहता है कि यदि आहार के योग से जगत के जीव जीते हों तो संसारवासी कोई भी जीव नहीं मरता । हे निमित्त ! आहार के कारण जीवन नहीं टिकता। यदि जगत के जीवों का जीवन आहार से टिकता हो तो इस जगत में किसी जीव को मरना ही नहीं चाहिए, किन्तु खाते-खाते भी जगत के अनेक जीव मरते देखे गये हैं। इससे सिद्ध है कि आहार जीवन का कारण नहीं है। सब अपनी-अपनी आयु से जीते हैं। जब तक आयु होती है, तब तक जीता है और आयु के न होने पर चक्रवर्ती, वासुदेव के लिए बनाये गये सिंह केशरिया लड्डू खाने पर भी मर जाता है। जहाँ आयु समाप्त हुई, वहाँ
SR No.008359
Book TitleMool me Bhool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size269 KB
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