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________________ प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची प्रकाशकीय पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर जैन समाज की ख्याति प्राप्त संस्था है, जो जैन आगम के प्रकाशन में अग्रणी है। इस संस्था के माध्यम से प्रकाशित विपुल साहित्य ने बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। लागत से भी कम कीमत में साहित्य उपलब्ध कराने में इस संस्था का कोई सानी नहीं है। बीसवीं शताब्दी के चर्चित आध्यात्मिक संत पूज्य कानजी स्वामी के प्रवचनों का प्रकाशन भी इस संस्था का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य रहा है। यही कारण है कि पूज्य स्वामीजी के प्रवचनों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें और उनके अनेक संस्करण इस संस्था के माध्यम से प्रकाशित होकर जन-जन तक पहँच चुके हैं। आत्मार्थी बन्धुओं ने उक्त साहित्य के पठन-पाठन में गहरी रुचि दिखाई है। उक्त श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए भैया भगवतीदासजी और कविवर बनारसीदासजी कृत उपादान-निमित्त संवाद विषयक दोहों पर पू. स्वामीजी के प्रवचन मूल में भूल पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। वैसे तो इसका सर्वप्रथम प्रकाशन सं. २४७३ में सोनगढ़ से किया गया था, परन्तु अब अनुपलब्ध होने से इसे पुनः प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति का अनुवाद पं. परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ द्वारा किया गया है, जिसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं। लम्बे अन्तराल के पश्चात् इस कृति का पुनः प्रकाशन किया जा रहा है, इसका भी एक हेतु है। जिनेन्द्रकथित तत्त्वज्ञान का अध्ययन करते समय सन् १९६० से ही मेरे मन में उपादान-निमित्त को लेकर खलबली मची हुई थी। अनेक ग्रंथों का अध्ययन करने तथा शताधिक विद्वानों के समागम से भी मैं तत्त्वसम्बन्धी निर्णय नहीं कर पा रहा था। स्वामीजी को भी सुना तदनन्तर भी अनिर्णीत अवस्था में अन्दर से सन्तुष्टि नहीं मिली। अकस्मात् मुझे 'मूल में भूल' पुस्तक पढ़ने को मिली, जिससे मुझे अत्यन्त स्पष्ट निर्णय हुआ। तभी से मेरे मन में इसे पुनः प्रकाशित करने की भावना थी, पर संयोग नहीं बना। अब इसका प्रकाशन किया जा रहा है। प्रस्तुत प्रकाशन की मुद्रणादि व्यवस्था व सुन्दर कलेवर में प्रस्तुत करने का श्रेय जहाँ विभाग के मैनेजर श्री अखिल बंसल को है, वहीं प्रूफ रीडिंग हेतु पं. संजयकुमारजी शास्त्री, बड़ामलहरा का श्रम श्लाघनीय है, इसके लिए दोनों महानुभाव बधाई के पात्र हैं। साधर्मी विवेकीजन इस उपादान-निमित्त के संवाद को हृदयंगम कर यथार्थ श्रद्धान पूर्वक मूल की भूल को समझपूर्वक निकाल कर अपना आत्मकल्याण करें - ऐसी भावना है। -ब्र. यशपाल जैन एम.ए. प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट (iii) १. श्री गम्भीरचन्दजी जैन सेमारीवाले, अहमदाबाद ३०१.०० २. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज २५१.०० ३. श्री बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल २५१.०० ४. श्रीमती श्रीकान्ताबाई ध.प. श्री पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर २५१.०० ५. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत २५१.०० ६. ब्र. कुसुम जैन, बाहुबली कुम्भौज २५०.०० ७. श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गौहाटी १०१.०० ८. स्व. धापूदेवी ध.प. स्व. ताराचन्दजी गंगवाल की पुण्य स्मृति में, जयपुर १०१.०० ९. श्रीमती सोहनदेवी स्व. तनसुखलालजी पाटनी, जयपुर १०१.०० १०. श्रीमती शान्तीदेवी धनकुमारजी जैन, जयपुर १०१.०० ११. श्रीमती गुलाबीदेवी लक्ष्मीनारायणजी रारा, शिवसागर १०१.०० कुल राशि २०६०.०० (iv)
SR No.008359
Book TitleMool me Bhool
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size269 KB
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