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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका अज्ञात है इसीलिए निमित्त की मुख्यता से कथन करना अनिवार्य है। यदि कोई गिलास टूट गया और कोई पूछे कि यह किसने तोड़ा? तो उसका आशय निमित्त के बारे में जानने का है अतः निमित्त की मुख्यता से कथन किया जाता है। परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि निमित्त की मुख्यता से कथन मात्र होता है निमित्त से कार्य नहीं होता।
प्रश्न १८. जब निमित्त से कार्य नहीं होता तो उसे उपचार से भी कारण कहने का क्या प्रयोजन है?
उत्तर :- निमित्त का यथार्थ ज्ञान होने पर वह उपादान का कर्ता है - ऐसी मिथ्या मान्यता मिट जाती है ; तथा धर्म के सच्चे निमित्त देव-शास्त्र-गुरु की सच्ची श्रद्धा होती है। अन्यथा हम उन्हें ही अपने हित का कर्ता मानते रहेंगे। इसप्रकार कारण-कार्य व्यवस्था का यथार्थ ज्ञान करने के लिए निमित्त का यथार्थ ज्ञान करना आवश्यक है।
क्रमबद्धपर्याय : आदर्श प्रश्न-पत्र
आदर्श प्रश्न १ (निम्न प्रश्नों के आधार पर और भी प्रश्न बनाकर अभ्यास कराया जाना चाहिए।) प्रश्न १:- निम्न प्रश्नों के उत्तरों को सही स्थान पर लीखिए? १. एक के बाद एक पर्याय का होना - इसी का नाम है। - नियमितता २. जिसके बाद जो होना है वह पर्याय होती है। -क्रम ३. द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के सुमेल को कहते हैं। - प्रदेश ४. प्रवाहक्रम के सूक्ष्म अंश को कहते हैं।
- व्यवस्थित ५. विस्तारक्रम के सूक्ष्म अंश को कहते हैं।
- परिणाम ६. द्रव्य का प्रत्येक प्रदेश या परिणाम उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप हैं, इसलिये इस पद्धति को कहते हैं।
- भवितव्यता ७. लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर खचित है। - त्रिलक्षण परिणाम पद्धति ८. होने योग्य कार्य को कहते हैं।
- कालाणु ९. क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सबसे प्रबल हेतु हैं।
- होनहार १०. वस्तु की सहज शक्तियों को कहते हैं।
- सर्वज्ञता ११. प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति के निश्चित समय को कहते हैं। - निमित्त १२. सुनिश्चित क्रम में होने वाले कार्य को कहा जाता है। -काललब्धि १३. जिस पर कार्य की उत्पत्ति का जिस पर में आरोप किया जाता है, वह बाह्य-पदार्थ कहलाता है।
-स्वभाव प्रश्न २. हाँ या ना में उत्तर दीजिए? १. ईश्वर सृष्टि का कर्ता है। २. एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता है। ३. ज्ञानी अपने रागादि भावों का कर्ता नहीं है। ४. द्रव्य अपनी पर्यायों के क्रम में परिवर्तन का कर्ता नहीं है। ५. जगत का जो कार्य हमारे ज्ञान में अव्यवस्थित लगता है, वास्तव में वह भी व्यवस्थित ही
है। कोई भी कार्य अव्यवस्थित लगना हमारा अज्ञान है। ६. कार्य की उत्पत्ति में काललब्धि मुख्य करना और अन्य समवायों के गौण करना सम्यक्
एकान्त है।
अहा! देखो तो सही! क्रमबद्धपर्याय के निर्णय में कितनी गम्भीरता है! द्रव्य की पर्याय पर-पदार्थों से उत्पन्न होती है - यह बात तो है ही नहीं, परन्तु द्रव्य स्वयं अपनी पर्याय को उल्टीसीधी बदलना चाहे तो भी वह नहीं बदलती। जैसे त्रिकाली द्रव्य पलटकर अन्यरूप नहीं होता, वैसे उसका एक समय का अंश (परिणाम) पलटकर अन्य अंशरूप नहीं होता।
- अध्यात्म गंगा : बोल क्रमांक ३७५