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________________ पाँच समवाय (सोरठा) प्रथम चार समवाय, उपादान की शक्ति हैं। अरु पञ्चम समवाय, है निमित्त परवस्तु ही।। (वीरछन्द) गुण अनन्तमय द्रव्य सदा है, जो हैं उसके सहज स्वभाव। जैसे गुण होते हैं वैसे, कार्यों का हो प्रादुर्भाव ।। जैसे तिल में तेल निकलता, नहीं निकलता है रज से। चेतन की परिणति चेतनमय, जड़मय परिणति हो जड़ से ।। सब द्रव्यों में वीर्य शक्ति से, होता है प्रतिपल पुरुषार्थ । अपनी परिणति में द्रवता है, उसमें तन्मय होकर अर्थ ।। निज स्वभाव सन्मुख होना ही, साध्य सिद्धि का सत् पुरुषार्थ । पर-आश्रित परिणति में होता, बंध भाव दुखमय जो व्यर्थ ।। अपने-अपने निश्चित क्षण में, प्रतिपल होती हैं पर्याय । हैं त्रिकाल रहती स्वकाल में कहते परम पूज्य जिनराय ।। है पदार्थ यद्यपि परिणमता इसीलिए कर्ता होता। किन्तु कभी भी पर्यायों का क्रम विच्छेद नहीं होता ।। उभय हेतु से होने वाला कार्य कहा जिसका लक्षण । वह भवितव्य अलंध्य शक्तिमय, ज्ञानी अनुभवते प्रतिक्षण ।। जैसा जाना सर्वज्ञों ने वैसा होता है भवितव्य । अनहोनी होती न कभी भी, जो समझे वह निश्चित भव्य ।। प्रति पदार्थ में है पुरुषार्थ, स्वभाव काललब्धि अरु कार्य। कार्योत्पत्ति समय में जो, अनुकूल वही निमित्त स्वीकार ।। उपादान की परिणति जैसी, वैसा होता है उपचार । सहज निमित्तरु नैमित्तिक, सम्बन्ध कहा जाता बहुबार ।। सामान्य निर्देश क्रमबद्धपर्याय शिक्षण-प्रशिक्षण हेतु उपयोगी सामान्य निर्देश (कृपया शिक्षण-कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व अध्यापकगण इन निर्देशों को अवश्य पढ़ लें) १. क्रमबद्धपर्याय की चर्चा जन-जन में प्रचलित होती रहे, इस उद्देश्य से ८-१० दिन के क्रमबद्धपर्याय शिविर आयोजित होना प्रारंभ हो गए हैं। अधिक से अधिक अध्यापक-गण ऐसे शिविरों में तथा नियमित रूप से यह विषय पढ़ा सकें - इस उद्देश्य से यह निर्देशिका लिखी गई है। २. इस निर्देशिका के माध्यम से पढ़ाते समय पाठ्य-पुस्तक साथ में रखना अनिवार्य है, क्योंकि उसके गद्यांशों को अनेक भागों में विभक्त करके निर्देशिका में मात्र उनके प्रारंभ और अन्त के वाक्यांश लिखे गये हैं, पूरा गद्यांश नहीं लिखा गया। ध्यान रहे, जिस प्रकरण पर विचार व्यक्त किये गये हैं, उसे गद्यांश कहा गया है। ३. गद्यांशों के पृष्ठ क्रमांक क्रमबद्धपर्याय पुस्तक के छठवें संस्करण से लिये गये हैं, अतः पढ़ाते समय छठवें या इसके बाद के संस्करणवाली पुस्तक साथ में रखना अधिक सुविधाजनक होगा। ४. पाठ्य अंश में समागत सैद्धान्तिक शब्दों की परिभाषा तथा उदाहरण आदि को स्वयं के चिन्तन के आधार से विशेष स्पष्टीकरण शीर्षक से दिया गया है। ५. 'विचार बिन्दु' और 'विशेष स्पष्टीकरण' की विषय-वस्तु को याद करने में सुविधा की दृष्टि से इन पर आधारित प्रश्न भी दिए गए हैं, जिनके आधार से उत्तर तैयार कराये जाना चाहिए। ६. सामान्यतया शिविरों में युवा छात्रों के साथ-साथ सैकड़ों प्रौढ़ एवं वृद्ध श्रोता भी उपस्थित होते हैं। प्रत्येक कास्वाध्याय तथा बौद्धिक स्तर भिन्न-भिन्न होता है। अतः कक्षा का वातावरण बनाने के लिए प्रश्नोत्तर लिखने वाले, कक्षा में प्रश्नों के उत्तर देने वाले तथा परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को कक्षा में आगे बिठाना चाहिए। उनके बैठने का स्थान श्रोताओं के बैठने के स्थान से अलग दिखे - इस उद्देश्य से रस्सी आदि के माध्यम से स्थान का वर्गीकरण पहले से ही व्यवस्थापकों द्वारा करा लें। ७. छात्रों तथा श्रोताओं की अनुमानित संख्या के आधार पर पुस्तकें, कापियाँ तथा लिखने की सुविधा के लिए लकड़ी या गत्ते की व्यवस्था पहले से ही करा लेना चाहिए। ८. क्रमबद्धपर्याय पुस्तक उच्च स्तरीय शैक्षणिक स्तर की पुस्तक है। यह श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय जयपुर में शास्त्री प्रथम वर्ष के छात्रों के पाठ्यक्रम में है। अतः इसे पढ़ाने में श्री वीतराग-विज्ञान आध्यात्मिक शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर के पाठ्यक्रम में निर्धारित प्रशिक्षण-निर्देशिका के नियमों का पालन यथा सम्भव अवश्य करना चाहिए।
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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