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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
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गद्यांश८ तार्किक चूड़ामणि......... ............से निश्चित नहीं होते।
(पृष्ठ १३ पैरा ५ से पृष्ठ १४ पैरा ४ तक) विचार बिन्दु :- आचार्य समन्तभद्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में केवलज्ञान दर्पण में लोकालोक प्रतिबिम्बित होने का उल्लेख करते हुए वर्धमान भगवान को नमस्कार किया है।
इसप्रकार अनेक आगम प्रमाणों से सर्वज्ञता और त्रिकालज्ञता सहजसिद्ध होने पर भी लोग पूछते हैं कि क्रमबद्धपर्याय की बात कौन से शास्त्र में लिखी है? वास्तव में देखा जाए तो सम्पूर्ण जिनागम में सर्वज्ञता और क्रमबद्धपर्याय के स्वर गूंजते हैं।
समाज में प्रचलित पूजन-पाठों में क्रमबद्धपर्याय की बात सर्वत्र सुनाई देती है। इस संदर्भ में लेखक ने चन्द्रप्रभ पूजन की जयमाला का उल्लेख किया है। इसीप्रकार आचार्य समन्तभद्र कृत "स्वयंभू स्तोत्र' तथा अन्य अनेक पूजनों में भी सर्वज्ञता और क्रमबद्धपर्याय की बात आती है। प्रश्न:१५. रत्नकरण्ड श्रावकाचार और चन्द्रप्रभ पूजन के आधार से क्रमबद्धपर्याय का समर्थन कीजिए?
事本本本 प्रथमानुयोग से क्रमबद्धपर्याय का समर्थन
गद्यांश प्रथमानुयोग के सभी शास्त्र......... ...........की घोषणायें की गई थीं।
(पृष्ठ १४ पैरा ५ से पृष्ठ १६ पंक्ति १ तक) विचार बिन्दु :- इस गद्यांश में लेखक ने प्रथमानुयोग में प्रसिद्ध चार घटनाओं का उल्लेख करके भविष्य की घटनाओं का निश्चित होना सिद्ध
क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन किया है। वे घटनाएँ निम्नानुसार हैं।
(अ) भगवान नेमिनाथ ने १२ वर्ष पूर्व द्वारका जलने की घोषणा कर दी थी।
(ब) भगवान आदिनाथ ने मारीचि के २४वें तीर्थंकर होने की घोषणा एक कोड़ा-कोड़ी सागर पहले कर दी थी।
(स) आचार्य भद्रबाहु द्वारा निमित्त-ज्ञान के आधार पर उत्तर भारत में बारह वर्ष के अकाल की घोषणा कर दी गई थी, जो पूर्णतः सत्य सिद्ध हुई।
(द) सम्राट चन्द्रगुप्त के स्वप्नों के आधार पर की गई भविष्य की घोषणाएँ आज भी सिद्ध हो रही हैं।
अज्ञानियों को ऐसा लगा कि भगवान द्वारका जला देंगे, परन्तु वे तो वीतरागी और सर्वज्ञ थे। उन्होंने तो जैसा जाना था वैसा कह दिया था। भगवान द्वारा द्वारका जलाए जाने की बात तो दूर रही, द्वीपायन मुनि व अन्य लोगों ने भी उसे बचाने के बहुत प्रयत्न किये, परन्तु उससमय वे ही उसके जलने में निमित्त बने । द्वारका तो स्वयं अपनी उपादानगत योग्यता से अपने स्वकाल में जली।
मारीचि को भी २४वाँ तीर्थंकर होना बताया गया था। अतः सहज ही उसके परिणाम ऐसे हुए की एक-कोड़ी सागर तक अनेकों भव धारण किए। मारीचि का स्वतंत्र परिणमन भी आदिनाथ द्वारा की गई घोषणा के अनुरूप ही था। प्रश्न :१६. भगवान नेमिनाथ द्वारा द्वारिका जलने की घोषणा सुनकर किन लोगों पर क्या
प्रतिक्रिया हुई? १७. प्रथमानुयोग की किन घटनाओं से 'क्रमबद्धपर्याय' का पोषण होता है?
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करणानुयोग से क्रमबद्धपर्याय का समर्थन