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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका इन्कार भी नहीं कर पाता, अतः सर्वज्ञता की व्याख्यायें बदलने लगता है, ताकि सर्वज्ञता का निषेध भी नहीं हो, और कर्तृत्व का अभिमान भी सुरक्षित रह जाए। २. विशेष स्पष्टीकरण : अज्ञानी सर्वज्ञता को हृदय से स्वीकार करता है, बुद्धि से नहीं इसका आशय यह है कि यह जीव कुल-मान्यता से या परम्परागत श्रद्धा से तथा आगम के आधार पर यह तो मानता है कि जगत में सर्वज्ञ हैं, परन्तु तर्क और युक्ति से सर्वज्ञ स्वभाव की श्रद्धापूर्वक और अकर्ता स्वभाव की दृष्टि पूर्वक सर्वज्ञ की सत्ता को स्वीकार नहीं करता। अतः जब सर्वज्ञ की श्रद्धा से यह फलितार्थ निकलता है कि प्रत्येक पर्याय की उत्पत्ति निश्चित समय में होती है, तो उसकी परम्परागत श्रद्धा को ठेस पहुँचती है। प्रश्न :९. भविष्य की पर्यायों के उत्पत्ति का समय भी निश्चित है - ऐसा कहने पर अज्ञानी की क्या प्रतिक्रिया होती है? क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन भगवान प्रत्येक द्रव्य की भूत और भविष्य की पर्यायों को भी वर्तमानवत् स्पष्ट जानते हैं। सर्वज्ञसिद्धि जैन-न्याय-शास्त्र का प्रमुख विषय है, फिर भी जब न्याय के विशेषज्ञ विद्वान भी सर्वज्ञता के सम्बन्ध में आशंकाएँ व्यक्त करते हैं या उसकी नई-नई व्याख्यायें प्रस्तुत करने लगते हैं, तो आश्चर्य होता है। सर्वज्ञ का ज्ञान अनिश्चयात्मक या सशर्त नहीं, अपितु निश्चयात्मक और बिना शर्त होता है। २. अज्ञानी सोचता है कि यदि भविष्य को निश्चित माना जाएगा, तो वस्तु की स्वतंत्रता खण्डित हो जाएगी। परन्तु यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि हमारी इच्छानुसार वस्तु का परिणमन होना स्वतंत्रता नहीं, अपितु वस्तु का तत्समय की योग्यतानुसार परिणमन करना ही स्वतंत्रता है। ३. यदि भविष्य को निश्चित न माना जाए, तो ज्योतिष-ज्ञान, निमित्तज्ञान आदि भी काल्पनिक सिद्ध होंगे। अतः सर्वज्ञ को भविष्यज्ञ न मानने पर सम्पूर्ण जिनागम के विरोध का प्रसंग आएगा। इसलिए जो लोग उनकी भविष्यज्ञता से इन्कार करते हैं, उनसे अनुरोध है कि वे इस विषय पर पुनर्विचार अवश्य करें। यह बात जिस व्यक्ति के माध्यम से प्रसिद्ध है, उसका विरोध करने के लिए वे जिनागम का विरोध न करें। ४. विशेष निर्देश :- पूर्व निर्देशानुसार आगम प्रमाणों की तालिका में ये आगम प्रमाण भी लिखवा दिए जायें। प्रत्येक आगम प्रमाण को यथासम्भव विस्तार से समझाया जाए। **. सर्वज्ञता-पोषक आगम प्रमाण गद्यांश ५ पर उसका यह अथक......... ................सानुरोध आग्रह है। (पृष्ठ ६ पैरा ३ से पृष्ठ १० पैरा २ तक) विचार बिन्दु : १. अज्ञानी यह सिद्ध करना चाहता है कि 'सर्वज्ञ भगवान भविष्य को निश्चित रूप से नहीं जानते', परन्तु उसका यह प्रयास सफल नहीं हो पाता, क्योंकि सम्पूर्ण जिनागम सर्वज्ञता की सिद्धि से भरा पड़ा है। इस गद्यांश में लेखक ने ८ आगम प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि केवली हमारी इच्छानुसार वस्तु का परिणमन स्वतंत्रता नहीं, अपितु परतंत्रता है । वस्तु की योग्यतानुसार परिणमन ही वस्तु की स्वतंत्रता है। 16
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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