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________________ सरस्वती पूजन (पं. द्यानतरायजी कृत) (दोहा) जनम-जरा-मृतु छय करै, हरै कुनय जड़रीति । भवसागरसों ले तिरै, पूर्जें जिन वच प्रीति ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतिवाग्वादिनि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतिवाग्वादिनि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतिवाग्वादिनि ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (त्रिभंगी) छीरोदधिगंगा, विमल तरंगा, सलिल अभंगा सुखसंगा। भरि कंचन झारी, धार निकारी, तृषा निवारी हितचंगा ।। तीर्थंकर की धुनि, गणधरने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमई। सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। करपूर मँगाया, चंदन आया, केशर लाया रंग भरी। शारदपद वंदों, मन अभिनंदों, पाप निकंदों दाह हरी ।।तीर्थंकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। सुखदास कमोद, धारकमोद, अति अनुमोदं चंदसमं। बहुभक्ति बढ़ाई, कीरति गाई, होहु सहाई मात ममं ।।तीर्थंकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। बहफूल सुवासं, विमल प्रकाशं, आनन्दरासं लाय धरे। मम काम मिटायो, शील बढ़ायो, सुख उपजायो दोष हरे।।तीर्थंकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। पकवानबनाया, बहुघृतलाया, सब विधिभाया मिष्ट महा। पूनँ थुति गाऊँ, प्रीति बढ़ाऊँ, क्षुधा नशाऊँ हर्ष लहा ।।तीर्थंकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोदभूतसरस्वतीदेव्यै क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. निर्वपामीति स्वाहा। करि दीपक ज्योतं, तमछय होतं, ज्योति उदोतं तुमहिं चढ़े। तुम हो परकाशक, भरमविनाशक, हम घट भासक ज्ञान बढ़े।। तीर्थंकर की धुनि, गणधरने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमई। सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। १९२८ शुभगंध दशोंकर, पावक में धर, धूप मनोहर खेवत हैं। सब पाप जलावै, पुण्य कमा, दास कहावै सेवत हैं। तीर्थंकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बादाम छुहारी, लोंग सुपारी, श्रीफल भारी, ल्यावत हैं। मनवांछित दाता, मेट असाता, तुम गुन माता गावत हैं ।।तीर्थकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। नयनन सुखकारी, मृदु गुणधारी, उज्ज्वल भारी मोल धरें। शुभगंध सम्हारा, वसन निहारा, तुम तन धारा ज्ञान करें। तीर्थकर.।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै दिव्यज्ञानप्राप्तये वसं निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन अच्छत, फूल चरु चत, दीप धूप फल अति लावै। पूजा को ठानत, जो तुम जानत, सो नर द्यानत सुख पावें।।तीर्थकर. ।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतसरस्वतीदेव्यै अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (सोरठा) ओंकार धुनिसार, द्वादशांगवाणी विमल । नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करै जड़ता हरै ।। (चौपाई) पहलो आचारांग बखानो, पद अष्टादश सहस प्रमानो। दूजो सूत्रकृतं अभिलाष, पद छत्तीस सहस गुरु भाषं ।। तीजो ठाना अंग स जान, सहस बियालिस पद सरधान। चौथो समवायांग निहारं, चौंसठ सहस लाख इक धारं ।। पंचम-व्याख्या प्रज्ञप्ति दरस, दोय लाख अट्ठाइस सहसं। छट्ठो ज्ञातृकथा विस्तार, पाँच लाख छप्पन हज्जारं ।। सप्तम उपासकाध्ययनंग, सत्तर सहस ग्यार लख भंग। अष्टम अन्तःकृत दश ईस, सहस अट्ठाइस लाख तेईसं ।। नवम अनुत्तरदश सुविशाल, लाख बानवै सहस चवाल। दशम प्रश्न व्याकरण विचार, लाख तिरानवै सोल हजारं ।। ग्यारम सूत्रविपाक सु भाखं, एक कोड़ चौरासी लाखं । चार कोड़ि अरु पन्द्रह लाखं, दो हजार सब पद गुरु भाखं।। द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं, इक सौ आठ कोडिपनवेदं। अड़सठ लाख सहस छप्पन हैं, सहित पंचपद मिथ्या हन हैं।। जिनेन्द्र अर्चना 10000 IIIIIIIIIIII/१९३ जिनेन्द्र अर्चना 97
SR No.008354
Book TitleJinendra Archana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size552 KB
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