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जगमग जगमग होत दशों दिश, ज्योति रही मन्दिर में छाय । श्रीजी के सन्मुख करत आरती, मोहतिमिर नासै दुखदाय ।। श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊँ मनवचकाय । हे करुणानिधि भव दुःख मेटो, यातैं मैं पूजों प्रभु पांय ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । अगर कपूर सुगन्ध मनोहर, चन्दन कूट सुगन्ध मिलाय ।
श्रीजी के सन्मुख खेय धुपायन, कर्म जरे चहुँगति मिटि जाय ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । श्रीफल और बादाम सुपारी, केला आदि छुहारा ल्याय । महा मोक्षफल पावन कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभु के पांय ।। श्री ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । शुचि निरमल नीरं गन्ध सुअक्षत, पुष्प चरू ले मन हरषाय । दीप धूप फल अर्घ्य सुलेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ।। श्री ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचकल्याणक (दोहा)
सर्वारथसिद्धि तैं चये, मरुदेवी उर आय ।
दोज असित आषाढ़ की, जजूँ तिहारे पांय ।।
ॐ ह्रीं श्री आषाढकृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चैतवदी नौमी दिना, जन्म्या श्री भगवान ।
सुरपति उत्सव अति करया मैं पूजौं धर ध्यान ।।
ॐ ह्रीं श्री चैत्रकृष्णनवम्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तृणवत् ऋद्धि सब छाँड़ि के, तप धार्यो वन जाय । नौमी चैत्र असेत की, ज्जूँ तिहारे पांय ।।
ॐ ह्रीं श्री चैत्रकृष्णनवम्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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जिनेन्द्र अर्चना
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फागुन वदि एकादशी, उपज्यो केवलज्ञान । इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजों इह थान ।। ॐ ह्रीं श्री फाल्गुनकृष्णैकादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
माघ चतुर्दशि कृष्ण की, मोक्ष गये भगवान । भवि जीवों को बोधि के, पहुँचे शिवपुर थान ।।
ॐ ह्रीं श्री माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
आदीश्वर महाराज, मैं! विनती तुमसे करूँ । चारों गति के माहिं मैं दुख पायो सो सुनो।
कर्म अष्ट मैं हूँ एकलो, यह दुष्ट महादुख देत हो । कबहूँ इतर निगोद में मोकूँ, पटकत करत अचेत हो ।।
म्हारी दीनतणी सुन वीनती । । टेक ॥।
प्रभु कबहुँक पटक्यो नरक में, जठै जीव महादुख पाय हो । नित उठि निरदई नारकी, जठै करत परस्पर घात हो । । म्हारी ।।
प्रभु नरक तणा दुःख अब कहूँ, जठै करें परस्पर घात हो । कोइयक बाँध्यो खंभसों, पापी दे मुदगर की मार हो । म्हारी. ।। कोइक काटें करोतसों, पापी अंगतणी दोय फाड़ हो । प्रभु यह विधि दुःख भुगत्या घणा, फिर गति पाई तिरयंच हो।। म्हारी ।। हिरणा बकरा बाछला, पशु दीन गरीब अनाथ हो ।
प्रभु मैं ऊँट बलद भैंसा भयो, जापै लदियो भार अपार हो । ।म्हारी. ।।
नहिं चाल्यौ जठै गिर पस्यो, पापी दे सोटन की मार हो । प्रभु कोइक पुण्य संजोगसँ, मैं तो पायो स्वर्ग निवास हो । म्हारी ।।
जिनेन्द्र अर्चना
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