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कोटि-शशि-भान-दुति-तेज छिप जात है। महा-वैराग-परिणाम ठहरात है।। वयन नहिं कहैं लखि होत सम्यक धरं ।।
भौन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं ।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशि द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमाभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालापूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) नन्दीश्वर-जिन-धाम, प्रतिमा-महिमा को कहै। 'द्यानत' लीनो नाम, यही भगति शिव-सुख करै ।।
(पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्)
रोम रोम पुलकित हो जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।टेक ।। ज्ञानानन्द कलियाँ खिल जायँ, जब जिनवर के दर्शन पाय ।। जिन-मन्दिर में श्री जिनराज, तन-मन्दिर में चेतनराज ।। तन-चेतन को भिन्न पिछान, जीवन सफल हुआ है आज ।। वीतराग सर्वज्ञ-देव प्रभु, आये हम तेरे दरबार । तेरे दर्शन से निज दर्शन, पाकर होवें भव से पार ।। मोह-महातम तुरत विलाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।१।। दर्शन-ज्ञान अनन्त प्रभु का, बल अनन्त आनन्द अपार । गुण अनन्त से शोभित है प्रभु, महिमा जग में अपरम्पार ।। शुद्धातम की महिमा आय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।२।। लोकालोक झलकते जिसमें, ऐसा प्रभु का केवलज्ञान। लीन रहें निज शुद्धातम में, प्रतिक्षण हो आनन्द महान ।। ज्ञायक पर दृष्टि जम जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।३।। प्रभु की अन्तर्मुख-मुद्रा लखि, परिणति में प्रकटे समभाव। क्षण-भर में हों प्राप्त विलय को, पर-आश्रित सम्पूर्ण विभाव ।। रत्नत्रय-निधियाँ प्रकटाय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।४ ।।
श्री आदिनाथ जिन पूजा
(पं. जिनेश्वरदासजी कृत) नाभिराय मरुदेवि के नन्दन, आदिनाथ स्वामी महाराज। सर्वार्थसिद्धि” आप पधारे, मध्यलोक माहिं जिनराज ।। इन्द्रदेव सब मिलकर आये, जन्म महोत्सव करने काज ।
आह्वानन सब विधि मिल करके, अपने कर पूजें प्रभु पांय ।। ॐह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् । क्षीरोदधि को उज्ज्वल जल ले, श्री जिनवर पद पूजन जाय। जन्म जरा दुख मेटन कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभु के पाय ।। श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊँ मनवचकाय । हे करुणानिधि भव दुःख मेटो, यामैं पूजों प्रभु पांय ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । मलयागिरि चन्दन दाह निकन्दन, कंचन झारी में भर ल्याय । श्रीजी के चरण चढ़ाओ भविजन, भव आताप तुरत मिट जाय ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । शुभशालि अखंडित सौरभमंडित, प्रासुक जलसों धोकर ल्याय। श्रीजी के चरण चढ़ावो भविजन, अक्षय पद को तुरत उपाय ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। कमल केतकी बेल चमेली, श्रीगुलाब के पुष्प मँगाय । श्रीजी के चरण चढ़ावो भविजन, कामबाण तुरत नसि जाय ।।श्री. ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नेवज लीना षट्-रस भीना, श्री जिनवर आगे धरवाय । थाल भराऊँ क्षुधा नसाऊँ, ल्याऊँ प्रभु के मंगल गाय ।।श्री. ।।
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । जिनेन्द्र अर्चना 10000
१५०000
जिनेन्द्र अर्चना
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