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(रोला) भक्ति रत्न से जड़ित आज मंगल सिंहासन । भेद-ज्ञान जल से क्षालित भावों का आसन ।। स्वागत है जिनराज! तुम्हारा सिंहासन पर । हे जिनदेव पधारो श्रद्धा के आसन पर ।। ॐ ह्रीं श्रीधर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह सिंहासने तिष्ठ तिष्ठ।
(थाली में जिनबिम्ब विराजमान करें) क्षीरोदधि के जल से भरे कलश ले आया। दृग-सुख-वीरज ज्ञानस्वरूपी आतम पाया ।। मंगल कलश विराजित करता हूँ जिनराजा। परिणामों के प्रक्षालन से सुधरें काजा ।।
ॐ ह्रीं अहँ कलशस्थापनं करोमि। (चारों कोनों में निर्मल जल से भरे कलश स्थापित करें) जल-फल आठों द्रव्य मिलाकर अर्घ्य बनाया। अष्ट अंग युत मानो सम्यग्दर्शन पाया ।। श्री जिनवर के चरणों में यह अर्घ्य समर्पित । करूँ आज रागादि विकारी भाव विसर्जित ।। ॐ ह्रीं श्री स्नपनपीठस्थिताय जिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
(पीठ स्थित जिनप्रतिमा को अर्घ्य चढ़ायें) मैं रागादि विभावों से कलुषित हे जिनवर ।
और आप परिपूर्ण वीतरागी हो प्रभुवर ।। कैसे हो प्रक्षाल, जगत के अघ-क्षालक का। क्या दरिद्र होगा पालक? त्रिभुवन पालक का ।। भक्ति भाव के निर्मल जल से अघ-मल धोता। है किसका अभिषेक भ्रान्त चित खाता गोता ।। नाथ! भक्तिवश जिन बिम्बों का करूँ न्हवन मैं।
आज करूँ साक्षात् जिनेश्वर का पर्शन मैं ।। ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं कृपालसन्तं वृषभादिमहावीरपर्यन्तं चतुर्विंशतितीर्थकरपरमदेवमाद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे.....नाम्निनगरे मासानामुत्तमे .......मासे.....पक्षे.....दिने मुन्यार्यिकाश्रावकश्राविकाणांसकलकर्मक्षयार्थपवित्रतरजलेन जिनमभिषेचयामि।
(चारों कलशों से अभिषेक करें तथा वादिन नाद करायें एवं जय-जय शब्दोच्चारण करें) ७० 0 00000
जिनेन्द्र अर्चना
(दोहा) क्षीरोदधि-सम नीर से, करूँ बिम्ब प्रक्षाल । श्री जिनवर की भक्ति से, जानूँ निज पर चाल ।। तीर्थंकर का न्ह्वन शुभ, सुरपति करें महान । पंचमेरु भी हो गये, महातीर्थ सुखदान ।। करता हूँ शुभ भाव से, प्रतिमा का अभिषेक । बनूं शुभाशुभ भाव से, यही कामना एक ।। जल-फलादि वस द्रव्य ले.मैं पजै जिनराज । हुआ बिम्ब अभिषेक अब, पाऊँ निज पदराज ।। ॐ ह्रीं अभिषेकान्ते वृषभादिवीरान्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। श्री जिनवर का धवल यश, त्रिभुवन में है व्याप्त । शान्ति करें मम चित्त में, हे परमेश्वर आप्त ।।
(पुष्पाञ्जलि क्षेपण करें)
(रोला) जिन प्रतिमा पर अमृतसम जल-कण अति शोभित । आत्म-गगन में गुण अनन्त तारे भवि मोहित ।। हो अभेद का लक्ष्य भेद का करता वर्जन । शुद्ध वस्त्र से जल-कण का करता परिमार्जन ।।
(प्रतिमा को शुद्ध वस्त्र से पोंछे)
(दोहा) श्री जिनवर की भक्ति से, दूर होय भव-भार ।
उर-सिंहासन थापिये, प्रिय चैतन्य कुमार ।। (जिनप्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान करें तथा निम्न छन्द बोलकर अर्घ्य चढ़ायें।)
जल-गन्धादिक द्रव्य से, पूर्जू श्री जिनराज । पूर्ण अर्घ्य अर्पित करूँ, पाऊँ चेतनराज ।। ॐ ह्रीं श्री पीठस्थितजिनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) जिन संस्पर्शित नीर यह, गन्धोदक गुण खान ।
मस्तक पर धारूँ सदा, बनें स्वयं भगवान ।। (मस्तक पर गन्धोदक चढ़ायें । अन्य किसी अंग से गन्धोदक का स्पर्श वर्जित है।)
जिनेन्द्र अर्चना 10000
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