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पर तथापि मेरो मनरथ पूरत सही। नय-प्रमाण तैं जानि महा साता लही ।। पापाचरण तजि न्ह्वन करता चित्त में ऐसे धरूँ। साक्षात् श्री अरहंत का मानो न्ह्वन परसन करूँ ।। ऐसे विमल परिणाम होते अशुभ नशि शुभबन्ध तैं। विधि अशुभ नसि शुभ बन्ध” है शर्म सबविधि तास ।।७।। पावन मेरे नयन भये तुम दरस तैं। पावन पाणि भये तुम चरननि परस तैं ।। पावन मन है गयो तिहारे ध्यान तैं। पावन रसना मानी, तुम गुण गान तैं ।। पावन भई परजाय मेरी, भयो मैं पूरण धनी। मैं शक्तिपूर्वक भक्ति कीनी, पूर्णभक्ति नहीं बनी।। धनि धन्य ते बड़भागि भवि तिन नींव शिवघर की धरी। वर क्षीरसागर आदि जल मणि-कुम्भभरी भक्ति करी ।।८।। विघन-सघन-वन-दाहन दहन प्रचण्ड हो। मोह-महातम-दलन प्रबल मार्तण्ड हो ।। ब्रह्मा विष्णु महेश आदि संज्ञा धरो। जगविजयी जमराज नाश ताको करो ।। आनन्दकारण दुख निवारण, परममंगलमय सही। मोसो पतित नहिं और तुमसो, पतित-तार सुन्यो नहीं।। चिंतामणि पारस कलपतरु, एक भव सुखकार ही। तुम भक्ति-नौका जे चढ़े, ते भये भवदधि पार ही।।९।। तुम भवदधि तैं तरि गये, भये निकल अविकार ।
तारतम्य इस भक्ति को, हमैं उतारो पार ।।१०।। निर्मल वख से प्रतिमाजी को साफ कर निम्न श्लोक बोलकर गन्धोदक ग्रहण करें -
निर्मलं निर्मलीकरणं पावन पापनाशनम् । जिनचरणोदकं वंदे अष्टकर्म-विनाशनम् ।।
प्रतिमा प्रक्षाल पाठ (पं. अभयकुमारजी कृत)
(दोहा) परिणामों की स्वच्छता, के निमित्त जिनबिम्ब । इसीलिए मैं निरखता, इनमें निज प्रतिबिम्ब ।। पञ्च प्रभु के चरण में, वन्दन करूँ त्रिकाल ।
निर्मल जल से कर रहा, प्रतिमा का प्रक्षाल ।। अथ पौर्वाह्निकदेववन्दनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजास्तवनवन्दनासमेतं श्री पंचमहागुरुभक्तिपूर्वककायोत्सर्ग करोम्यहम् ।
(नौ बार णमोकार मन्त्र पढ़ें)
(छप्पय) तीन लोक के कृत्रिम और अकृत्रिम सारे । जिनबिम्बों को नित प्रति अगणित नमन हमारे ।। श्री जिनवर की अन्तर्मुख छवि उर में धारूँ।
जिन में निज का निज में जिन-प्रतिबिम्ब निहारूँ।। मैं करूँ आज संकल्प शुभ, जिन प्रतिमा प्रक्षाल का। यह भाव सुमन अर्पण करूँ, फल चाहूँ गुणमाल का ।।
ॐ ह्रीं प्रक्षालप्रतिज्ञायै पुष्पांजलिं क्षिपेत् । (प्रक्षाल की प्रतिज्ञा हेतु पुष्प क्षेपण करें)
(रोला) अन्तरंग बहिरंग सलक्ष्मी से जो शोभित । जिनकी मंगल वाणी पर है त्रिभुवन मोहित ।। श्री जिनवर सेवा से क्षय मोहादि विपत्ति । हे जिन! श्री लिख पाऊँगा निज-गुण सम्पत्ति ।। (थाली की चौकी पर केशर से श्री लिखें)
(दोहा) अन्तर्मुख मुद्रा सहित, शोभित श्री जिनराज । प्रतिमा प्रक्षालन करूँ, धरूँ पीठ यह आज ।।
ॐ ह्रीं श्री पीठस्थापनं करोमि।
(प्रक्षाल हेतु थाली स्थापित करें) जिनेन्द्र अर्चना 10 0
200000 जिनेन्द्र अर्चना
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