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दीप धूप सुफल बहु साजहीं, जिन चढाय सुपातक भाजहीं।।
श्री सिद्धवरकूटजी का अर्घ्य जल चन्दन अक्षत लेय, सुमन महा प्यारी । चरू दीप धूप फल सोय, अरघ करों भारी ।। द्वय चक्री दस कामकुमार, भवतर मोक्ष गये । तातै पूजौं पद सार, मन में हरष ठये ।।
श्री जम्बूस्वमीजी का अर्घ्य मथुरा नगरी अति सुखदाता, जम्बूस्वामी मुक्ति विधाता। तीजे केवल ज्ञानी ध्यावो, सिद्ध स्थान पूजों निज पावो ।। चौरासी का मन्दिर भारी, उपवन मांहि महा सुखकारी। बड़े उछाह थकी हम पूजें, जाते आनन्द मारग सूझे ।।
श्री मांगीतुंगीगिरिजी का अर्घ्य जल फलादि वसु दरब साजके, हेम पात्र भरलाऊँ। मन वच काय नमूं तुम चरना, बार बार सिर नाऊँ।। राम हून सुग्रीव आदि जे, तुंगीगिर थिरथाई । कोड़ी निन्यानवे मुक्ति गये मुनि, पूजों मन वच काई ।।
श्रीखण्डगिरिजी का अर्घ्य जल फल वसु दरब पुनीत, लेकर अर्ध करूँ । नाचूं गाऊं इस भांति, भवतर मोक्ष वरूं ।। श्री खण्ड गिरि के शीश, दशरथ तनय कहै । मुनि पंचशतक शिवलीन, देश कलिंग कहैं ।।
श्री बाहुबलीस्वामीजी का अर्घ्य वसुविधि के वश वसुधा सबही, परवश अति दुख पावै । तिहि दुःख दूर करन को भविजन, अर्घ जिनाय चढावै ।। परम पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी। तिनके चरण-कमल को नित प्रति, धोक त्रिकाल हमारी ।।
श्री कुण्डलपुरजी का अर्घ्य श्री कुण्डलपुर क्षेत्र, सुभग अति सोहनी । कुण्डल सम सुख सदन हृदय मन मोहनो ।। गिरि ऊपर जिन भवन पुरातन हैं सही। निरखि मुदित मन भविक लहत आनन्द मही ।।
श्री मुक्तागिरिजी का अर्घ्य जल गंध आदिक द्रव्य लेके, अर्घ कर ले आवने । लाय चरन चढाय भविजन, मोक्षफल को पावने ।। तीर्थ मुक्तागिरि मनोहर, परम पावन शुभ कहो । कोटि साढे तीन मुनिवर, जहाँ ते शिवपुर लहो ।।
श्री पपौराजी का अर्घ्य अतिशय क्षेत्र प्रधान अति, नाम 'पपौरा' जान । टीकमगढ़ से पूर्व दिश, तीन मील परनाम ।।१।। साठ अधिक पन्द्रह जहाँ (७५) जिन मन्दिर सुखगार। जिन प्रतिमा तिहिं मधिं लसे, चौबीसों दुखहार ।।२।। चरण कमल उरधार तिहिं, पुनि पुनि शीश नवाय। पूजन तिन की रचत हों, कीजे भवि हर्षाय ।।३।।
क्षेत्र पपौरा मधि लसत, चौबीसों जिनराज । जिनेन्द्र अर्चना 1000
10. जिनेन्द्र अर्चना
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