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________________ केवलि-कन्ये, वाङ्मय गंगे, जगदम्बे, अघ नाश हमारे । सत्य-स्वरूपे, मंगलरूपे, मन-मन्दिर में तिष्ठ हमारे ।।टेक ।। जम्बूस्वामी गौतम-गणधर, हुए सुधर्मा पुत्र तुम्हारे । जगतै स्वयं पार है करके, दे उपदेश बहुत जन तारे ।।१।। कुन्दकुन्द, अकलंकदेव अरु, विद्यानन्दि आदि मुनि सारे । तव कुल-कुमुद चन्द्रमा ये शुभ, शिक्षामृत दे स्वर्ग सिधारे ।।२।। तूने उत्तम तत्त्व प्रकाशे, जग के भ्रम सब क्षय कर डारे । तेरी ज्योति निरख लज्जावश, रवि-शशि छिपते नित्य विचारे ।।३।। भव-भय पीड़ित, व्यथित-चित्त जन, जब जो आये शरण तिहारे । छिन भर में उनके तब तुमने, करुणा करि संकट सब टारे ।।४ ।। जब तक विषय-कषाय नशै नहीं, कर्म-शत्रु नहिं जाय निवारे । तब तक 'ज्ञानानन्द' रहै नित, सब जीवन तें समता धारे ।।५।। धन्य-धन्य जिनवाणी माता, शरण तुम्हारी आये। परमागम का मन्थन करके, शिवपुर पथ पर धाये।। माता दर्शन तेरा रे! भविक को आनन्द देता है। हमारी नैया खेता है ।।१।। वस्तु कथंचित् नित्य-अनित्य, अनेकांतमय शोभे। परद्रव्यों से भिन्न सर्वथा, स्वचतुष्टयमय शोभे ।। ऐसी वस्तु समझने से, चतुर्गति फेरा कटता है। जगत का फेरा मिटता है ।।२।। नय निश्चय-व्यवहार निरूपण, मोक्षमार्ग का करती। वीतरागता ही मुक्तिपथ, शुभ व्यवहार उचरती ।। माता! तेरी सेवा से, मुक्ति का मारग खुलता है। महा मिथ्यातम धुलता है ।।३।। तेरे अंचल में चेतन की, दिव्य चेतना पाते । तेरी अमृत लोरी क्या है, अनुभव की बरसातें ।। माता! तेरी वर्षा में, निजानन्द झरना झरता है। अनुपमानन्द उछलता है।।४।। नव-तत्त्वों में छुपी हुई जो, ज्योति उसे बतलाती। चिदानन्द ध्रुव ज्ञायक घन का, दर्शन सदा कराती।। माता! तेरे दर्शन से, निजातम दर्शन होता है। सम्यग्दर्शन होता है ।।५।। धन्य-धन्य वीतराग वाणी, अमर तेरी जग में कहानी। चिदानंद की राजधानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।टेक।। उत्पाद-व्यय अरु ध्रौव्य स्वरूप, वस्तु बखानी सर्वज्ञ भूप। स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।१।। जिनेन्द्र अर्चना 1000000000 ३२४८00000 जिनेन्द्र अर्चना 163
SR No.008354
Book TitleJinendra Archana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size552 KB
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