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________________ जिन खोजा तिन पाइयाँ इन भावों का फल क्या होगा से नरभव में तो मिलना संभव नहीं है। अतः कोई ऐसा स्थान अवश्य होना चाहिए कि जहाँ प्रति समय मरण-तुल्य दुःख हो; बस उसी स्थान का नाम नरक है, जो कि विषयानन्दी रौद्रद्यान के फल में प्राप्त होता है। बहुत आरम्भ व बहुत परिग्रह के धारक को नरक आयु का और मायाचार करने वालों को तिर्यंच आयु का बंध होता है। यह सब संयोग तो पुण्य के आधीन हैं, जिसके पास पैसा आता है, छप्पर फाड़कर चला आता है और जिसके भाग्य में नहीं होता तो दिन-रात दुकान पर बैठे-बैठे मक्खियाँ भगाया करता है। अतः पुण्य-पाप पर भी थोड़ा भरोसा करके समय अवश्य निकालो। हम लोग तो सचमुच पुराने पुण्य का फल भोग रहे हैं। नई कमाई तो अभी तक कुछ भी नहीं की। वह काहे का व्यापार, जिसमें पाप ही पाप हो? सचमुच आत्मकल्याण का व्यापार ही असली व्यापार है। (४७) मनुष्य की जिन्दगी ही कितनी है? अधिक से अधिक शतायु हुए तो बीस-पच्चीस वर्ष ही और मिलेंगे, भरोसा तो एक पल का भी नहीं है। मान लो! दस-बीस वर्ष मिल भी गये तो वे भी अर्द्धमृतक सम बुढ़ापे में गुजरने वाले हैं। यदि तत्त्वज्ञान के बिना ही हमारा यह जीवन चला गया तो फिर हमें अगला जन्म कहाँ/किस योनि में लेना पड़ेगा, इसका विचार हमें अवश्य करना चाहिए। दिन-रात, सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते हमारे जो अधिकांश खोटे भाव रहा करते हैं, उनका क्या फल होगा? यदि हम मरकर मच्छर बन गए तो हमारे बेटे ही हम पर डी.डी.टी. छिड़ककर मार डालेंगे। यदि अपने घर की ही खाट में खटमल हो गए तो हमारे बेटे-बहू ही केरोसीन छिड़ककर हमारी जान ले लेंगे। यदि कुत्ता-बिल्ली के पेट में चले गए तो नगरपालिकाओं द्वारा पकड़वाकर मरवा दिए जायेंगे। यदि गाय-भैंस-बैल आदि पशु हो गए तो क्या वहाँ रहने को एयरकंडीशन, मच्छरों से बचने को गुडनाइट और सोने के लिए डनलप के गद्दे मिलेंगे? अरे! खाने को मालिक जैसी सड़ीगली भूसे की सानी (पशुओं का भोजन) बनाकर रख देगा, वही तो खानी पड़ेगी। ___ यदि ऊँट, बैल, भैंसा, गधा, घोड़ा हो जायेंगे तो शक्ति से भी कई गुना अधिक भार लाद कर जोता जायेगा; चलते नहीं बनेगा तो कोड़े पड़ेंगे, लातों-घूसों से मार पड़ेगी; नाक छेदी जायेगी, चौबीसों घंटे बाँधकर रखा जाएगा। और क्या-क्या होगा? यदि एकेन्द्रिय-दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय हो गये तो दुःखों का कहना ही क्या है? रोंदे जायेंगे, पैले जायेंगे, गन्दी नालियों में पड़े-पड़े, बिल-बिलायेंगे, आग में जला दिये जायेंगे। मछली, मुर्गी, सूअर, बकरा, हिरण जैसे दीनहीन पशु हो गये तो मांसाहारियों द्वारा जिन्दा जलाकर भूनकर, काट-पीट कर खाया जायेगा। यदि हम चारों गतियों के अनन्तकाल तक ऐसे अनन्त दुःख नहीं सहना चाहते हैं तो अपने वर्तमान परिणामों की परीक्षा कर लें और शास्त्रों में लिखे उन परिणामों के फल पर विचार कर लें। और सोच लें कि अब हमें अपने शेष जीवन का किस तरह सदुपयोग करना है? यह समाज की झूठी-सच्ची नेतागिरी, यह न्याय-अन्याय से कमाया धन, ये स्वार्थ के सगे कुटुम्ब परिवार के लोग कहाँ तक साथ देंगे? क्या सम्राट सिकन्दर के बारे में नहीं सुना? उसने अनेक देशों को लूट-खसोटकर अरबों की सम्पत्ति अपने कब्जे में कर ली थी। अन्त में जब उसे पता चला कि मौत का पैगाम आ गया है, तब उसे अपने किए पापों से आत्मग्लानि हुई, पर अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।' (४८) पिछली कुछ दशाब्दियों से धर्म की साधना केवल पूजापाठ, विधिविधान, व्रत-उपवास, जप-तप तक ही सीमित हो गई थी। स्वाध्याय में (४०)
SR No.008353
Book TitleJina Khoja Tin Paiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size268 KB
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