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प्रथम संस्करण ३,००० (२९ अप्रेल, २००६) वैशाख शुक्ल दोज पूज्य गुरुदेव जयंती
कीमत : १० रुपये
मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर
जिन खोजा तिन पाइयाँ आगम- रत्नाकर में प्रतिदिन
जो गोते खूब लगायेगा ।
अध्यात्म का अवलम्बन ले
जो गहरे गोते खायेगा ||
यथाशीघ्र तल तक जाकर
वह अनमोल रतन ले आयेगा । रत्नत्रय की निधियाँ पाकर
वह अनुपम आनंद पायेगा ।। ह्न ह्न ह्न समकित का अनमोल रतन
उसके अनुभव में आयेगा ।
ज्ञान-रतन की ज्योति से
वह अज्ञान अंधेर भगायेगा ।।
निज स्वरूप में स्थिर हो
वह भवसागर तर जायेगा।
मोक्षमहल में जाकर के
वह कृत्य कृत्य हो जायेगा ।। ह्न
ह्न
ह्न
"जिन खोजा तिन पाइयाँ
यह विश्वास हमारा है।
आध्यात्मिक रत्नों को पाने का
ये ही बस एक सहारा है। - रतनचन्द भारिल्ल
(२)
प्रकाशकीय
'जिन खोजा तिन पाइयाँ' अध्यात्मरत्नाकर पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल के कथा साहित्य से चुने गए सिद्धान्त वाक्य, सूक्तियों और लोकव्यवहार में आनेवाले नीतिवाक्यों की संकलित कृति है, जिसे श्रीमती शान्तिदेवी जैन ने संकलित कर लिपिबद्ध किया है। पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल सिद्धहस्त लेखक एवं कथाशैली के कुशल चितेरे हैं।
• आपके द्वारा सरलतम निबन्ध शैली के अतिरिक्त उपन्यास शैली में लिखीं गईं छह कृतियाँ बहुत लोकप्रिय हुईं हैं। वे अनेक संस्करणों में प्रकाशित होकर रिकार्ड बिक्री द्वारा जन-जन तक पहुँच चुकीं हैं। पाठकों की माँग पर गुजराती एवं मराठी भाषा में भी इनके अनुवाद हुए हैं।
हमने कुछ समय पूर्ण डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल के सत् साहित्य सागर से चयनित सूक्तियों और सिद्धान्त वाक्यों को 'चिन्तन की गहराइयाँ' और 'सूक्तिसुधा' के रूप में प्रकाशित किया था। तबसे हमारे मन में अनेक बार ऐसा विचार आया कि पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल के सत्साहित्य सिंधु से भी सूक्तियों और सिद्धान्तवाक्यों के मणिमुक्ता चुनकर प्रकाशित किए जाय; किन्तु उनकी काललब्धि अब तक नहीं आ पायी।
हमें तब भारी प्रसन्नता हुई, जब हमें यह ज्ञात हुआ कि बिना हमारा संकेत पाये ही श्रीमती शान्तिदेवी ध. प. एम. पी. जैन ने स्वतः स्वान्तः सुखाय अपनी रुचि से पण्डितजी सा. के कथासाहित्य का सूक्ष्मदृष्टि से स्वाध्याय किया और चयनित महत्त्वपूर्ण अंशों का संकलन किया है। उनके इस कार्य में उनके पति श्री एम. पी. जैन, पूर्व अतिरिक्त कुलसचिव - राजस्थान विश्वविद्यालय ने भरपूर सहयोग दिया है और उनका संपादन कर उसे प्रकाशन योग्य बनाया है।
इतना ही नहीं, उन्होंने इस कृति को कम कीमत में जन-जन तक पहुँचाने के लिए स्वयं एवं अपने परिचितों के सहयोग से आर्थिक योगदान भी उपलब्ध कराया है। एतदर्थ हम उनके आभारी हैं।
इसके शुद्ध, स्वच्छ एवं सुन्दर प्रकाशन के लिए श्रीयुत अखिल बंसल धन्यवाद के पात्र हैं।
आशा है पाठकगण अन्य कृतियों की भाँति इससे भी लाभान्वित होंगे।
- ब्र. यशपाल जैन, प्रकाशन मंत्री