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संस्कार से
जिन खोजा तिन पाइयाँ कामांध नर-गिद्ध मंडराते ही रहते हैं। गिद्ध तो बेचारे मात्र मरे पशुओं का ही माँस नोचते-खाते हैं, पर ये कामी कूकर तो जिन्दा नारियों का माँस नोचने को फिरते हैं। कदाचित् किसी महिला में कहीं कोई कमजोरी देखी नहीं कि उसे डरा-धमकाकर, ब्लेकमेल कर उसे पथभ्रष्ट करने से नहीं
(३०) किसी असहाय, अबला के साथ यदि कोई अन्याय करता है, उसकी मजबूरी का अनुचित लाभ उठाने जैसा कुत्सित कार्य करने की कुचेष्टा करता है तो उसके प्रति प्रतिशोध की भावना होना स्वाभाविक ही है; पर किसी अपराधी को सुधारने का उपाय उस अपराधी से घृणा करना नहीं है। सन्मार्ग पर लाने के लिए तो उसे अपनाना पड़ेगा, अपना बनाना पड़ेगा।
चूकते।
(२५) 'पानी पीजे छानकर, मित्र कीजे जानकर' यह लोकोक्ति बताती है कि यदि बीमारियों से बचना चाहते हो तो पानी सदैव छानकर ही पीओ यदि विपत्तियों से बचना चाहते हो तो मित्र बनाने के पहले मनुष्य को अच्छी तरह से परख लो; क्योंकि दुनिया में ऐसे मतलबी मित्रों की कमी नहीं है, जो केवल स्वार्थ के ही साथी होते हैं, सम्पत्ति के ही संगाती होते हैं विपत्ति पड़ने पर साथ छोड़कर भाग जाते हैं, अपने मतलब के लिए मित्रों को मुसीबत में डालने से भी नहीं झिझकते और समय-समय पर मित्र की कमजोरियों का अनुचित लाभ उठाने से भी नहीं चूकते।
(२६) जो स्वयं सरल, सज्जन और ईमानदार होता है, वह सबको अपने समान ही समझता है।
(२७) द्वार पर आये अतिथि का अनादर नहीं करना चाहिए, चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो?
(२८) सुरा और सुन्दरी के व्यसन वस्तुतः ऐसे खोटे व्यसन हैं कि उनकी एक बार चाट लग जाने पर आसानी से नहीं छूटते।
(२९) जो अपनी पत्नी का पेट नहीं पाल सकता और उसकी रक्षा नहीं कर सकता, इज्जत नहीं बचा सकता, उसे क्या हक है शादी करने का?
कोई भी काम अपने-आप में छोटा या बड़ा नहीं होता। काम को छोटा या बड़ा मानते ही उसकी सफलता की संभावना ही क्षीण हो जाती है। यदि काम को छोटा समझ लिया गया तो उस काम को करने का मन ही नहीं होता, रुचि व उत्साह नहीं रहेगा।
यदि काम को अधिक बड़ा समझ लिया गया तो "इतना बड़ा काम मेरे वश की बात नहीं है", इस विचार से उस काम को करने की हिम्मत ही नहीं होती। जबकि किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए श्रम, साहस, उत्साह और ध्यान का पूरा केन्द्रीकरण आवश्यक होता है।
(३२) काम कोई भला-बुरा नहीं होता, भलाई-बुराई होती है व्यक्ति के विचारों में । यदि विचार नैतिक हैं तो हर काम नेक हैं। यदि विचार अनैतिक हैं, तो वह कोई काम क्यों न करें उसमें अनैतिकता की गंध होने से उस काम को बदनामी मिलना ही है।
(३३) आज बालकों को न तो कोई नैतिक शिक्षा मिल रही है और न कोई धार्मिक संस्कार। इसके बदले उन्हें आज मिल रही है विशुद्ध अर्थकारी शिक्षा और पश्चिमी भोग प्रधान भौतिक संस्कार। ___ बालकों के शिक्षा और संस्कारों के क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक काम कर सकती हैं। माँ को बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। अत: महिलाओं में जागृति लाने से यह काम अच्छी तरह हो सकता है।