________________
पठनीय पृष्ठभूमि
ह
रि
साहित्य-सृजन के मूल प्रेरणास्रोत होते हैं प्राकृतिक - मनोहारी दृश्य, महापुरुषों के जीवन की विशिष्ट वं शिक्षाप्रद घटनायें एवं उनके सम्बन्ध में साहित्यकार के खट्टे-मीठे अनुभव; जिनके द्वारा साहित्यकार अपने प्रिय पाठकों को रसानुभूति के साथ-साथ कुछ लोकहित और आत्मकल्याणकारी सीख भी देना चाहता है।
4.क.
था
इस बहुउद्देश्यीय प्रयोजन की पूर्ति के लिये कथा साहित्य-सृजन में समर्थ जैनाचार्यों को उन ६३ शलाका महापुरुषों के चरित्र अधिक प्रभावशाली लगे, जिन्होंने लोकहित एवं आत्मकल्याण के विशेष कार्य किये।
६३ शलाका महापुरुषों में २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण और ९ बलभद्र आ हैं। ये ६३ शलाका महापुरुष अपने-अपने युग में सम्यक् पुरुषार्थ करके असाधारण पराक्रम (साहस) द्वारा विविध प्रकार के अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करते हैं । जैन और जैनेतर पुराणों में इन सबका विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
९ बलभद्रों में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम और ९ नारायणों में लीलापुरुषोत्तम एवं कर्मवीर श्रीकृष्ण वैदिक और श्रमण संस्कृति के पुराणों में सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व हैं । इन चरित्रों को साहित्यकारों ने क्षेत्र | व काल की स्थितियों के अनुकूल अपनी-अपनी नैतिक व सैद्धान्तिक विचारधारा के अनुरूप अपनाया है । भारतीय पुराण साहित्य के अध्ययन और धार्मिक संस्कृति के अवलोकन से ज्ञात होता है कि भारतीय जन-जीवन में सदैव वीरपूजा होती रही है। चाहे वह पूजा धर्मवीर, दानवीर के रूप में हो अथवा शूरवीर या युद्धवीर के रूप में हो । जिन्होंने भी धर्म, समाज एवं राष्ट्र के हित में शक्ति से अधिक साहस के काम किये, अपना सर्वस्व समर्पण किया, वे तत्कालीन समय में सम्मान के पात्र तो हुये ही; आगे चलकर उनमें से भगवान तथा देवी-देवताओं के रूप में आराध्य भी बन गये ।
से
बहुत
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि जब भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर देश
प
10 p po F
य
भू
मि