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|| 'यह क्या'? ऐसे शब्द बोलने लगे। गंधर्व देव अपनी-अपनी देवी पत्नियों के साथ उन मुनिराजों के समीप || मनोहर गीत गाने लगे। देवगण कह रहे थे - हे प्रभो ! आपके तप के प्रभाव से आज तीनों लोक चलविचल हो उठे हैं। यह सब देखकर 'बलि' भी घबड़ा गया, किंकर्तव्य विमूढ़-सा हो गया।
तदनन्तर धीर-वीर विद्याधरों और आकाश में विचरण करनेवाले चारण ऋद्धिधारक मुनियों ने जब मुनि विष्णुकुमार को शान्त किया तब धीरे-धीरे वे अपनी विक्रिया का संकोच कर स्वभावस्थ हो गये। उसी समय देवों ने शीघ्र ही मुनियों का उपसर्ग दूर कर दुष्ट बलि को बाँध लिया और उसे दण्डित कर देश से दूर निकाल दिया।
इसप्रकार जिनशासन के प्रति वात्सल्य प्रगट करते हुए मुनि विष्णुकुमार ने गुरु के पास जाकर प्रायश्चित द्वारा विक्रिया की शल्य को त्याग दिया और घोर तप द्वारा घातिया कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया।
जो मनुष्य विष्णुकुमार के धर्मवात्सल्य, अंकपनाचार्य की निश्चलता तथा श्रुतसागर के प्रायश्चित के आदर्श से, अपने परिणामों को निर्मल करता है, वह सातिशय पुण्य के साथ परम्परा मुक्ति को भी प्राप्त करते हैं।"
गम्भीर, विचारशील और बड़े व्यक्तित्व की यही पहिचान है कि वे नासमझ और छोटे व्यक्तियों की छोटी-छोटी बातों से प्रभावित नहीं होते, किसी भी क्रिया की बिना सोचे-समझे तत्काल प्रतिक्रिया प्रगट नहीं करते। अपराधी पर भी अनावश्यक उफनते नहीं हैं, बड़बड़ाते नहीं हैं, बल्कि उसकी बातों पर, क्रियाओं पर शान्ति से पूर्वापर विचार करके उचित निर्णय लेते हैं, तदनुसार कार्यवाही करते हैं और आवश्यक मार्गदर्शन देते हैं। - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ-३८