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________________ लगे । एक दिन श्यामा ने सत्रह तारवाली वीणा बजायी, जिससे वसुदेव ने प्रसन्न होकर मुँह माँगा वरदान | माँगने के लिए कहा - श्यामा ने वर में यह माँगा कि "चाहे दिन हो या रात आप मेरे बिना अकेले न रहें" यह वर माँगने का एक मात्र कारण यह है कि - मेरा शत्रु अंगारक तुम्हें हरकर ले जा सकता है - ऐसा मुझे भय है। मेरे रहते वह आपका हरण नहीं कर सकता; क्योंकि मैं विद्याधर कन्या हूँ, मेरे पास उसका सामना करने की विद्या है, जो आपके पास नहीं है। कालान्तर में यह घटना घट भी गई, जिसकी श्यामा को संभावना थी। एक दिन सोते समय वह शत्रु अंगारक, जो श्यामा का चचेरा भाई भी था, वसुदेव को अपहरण करके उठा ले गया । श्यामा की नींद टूटते ही उसने अंगारक का पीछा किया और श्यामा तथा वसुदेव ने मिलकर अंगारक को मार भगा दिया। तदनन्तर कुमार वसुदेव श्यामा द्वारा दी हुई 'पर्णलघ्वी' विद्या से आकाश से नीचे उतर कर | चम्पानगरी के बाह्य उद्यान में कमलों के सरोवर के किनारे पर आ गये । वहाँ मानस्तम्भ आदि सहित भगवान वासुपूज्य का मन्दिर था । वसुदेव ने मन्दिर की वंदना की और वहीं ठहर गये । प्रात: मन्दिर का पुजारी आया। वसुदेव ने उससे पूछा - “यह कौन-सा देश है ? कौन-सी नगरी है ?” उत्तर में पुजारी ने कहा -“यह अंग देश की चम्पानगरी है।" पुजारी ने पूछा - "आप ऐसा क्यों पूछ रहे हो ? क्या आप आकाश मार्ग से उतरे हैं ? वसुदेव ने कहा हाँ, दो यक्ष कुमारियों ने मेरा अपहरण कर लिया था; उनका आपस में झगड़ा होने से मैं आकाश से पृथ्वी पर आ पड़ा हूँ - ऐसा कह कर वसुदेव ने ब्राह्मण का वेष धारण कर उस चम्पानगरी में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने जहाँ-तहाँ मनुष्यों को वीणा हाथों में लिए देखकर पूछा - "ये लोग इसतरह वीणा हाथों में लिए इधर-उधर क्यों घूम रहे हैं ?" उत्तर में ब्राह्मण ने कहा - "इस नगरी में एक चारुदत्त सेठ रहता है, उसकी गंधर्वसेना पुत्री है वह ||३ o_Ev 45 FEBF
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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