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________________ और कर्मोदयजन्य सांसारिक दुःखों की मार्मिक हृदयों को हिला देनेवाली चर्चा भी है, जो कि प्रथमानुयोग के शास्त्रों की प्राणस्वरूप है। । यदि इन सैद्धान्तिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वोपदेश को निकाल दिया जाय या ये हो ही नहीं तो फिर ये शास्त्र न रहकर शस्त्र बन जायेंगे, मात्र विकथा रह जायेंगे। वीतरागतावर्द्धक तत्त्वोपदेश के कारण ही ये कथा ग्रन्थ शास्त्र कहलाते हैं, अत: पाठकों को इन प्रकरणों को विशेष रुचि से पढ़ना होगा। कथानक तो केवल बताशा है, असली कुनैन (औषधि) तो ये तात्त्विक विवेचन ही है। मूल प्रयोजनभूत अध्यात्म जो इस ग्रन्थ में है, वह इसप्रकार है - सर्वप्रथम एक के रूप में द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म से पृथक् ज्ञानानन्द-स्वभावी, अनादि-अनन्त, शुद्धात्मा के स्वरूप को जानो। इसी एक को दो भेदों से जाने तो कारणपरमात्मा और कार्यपरमात्मा के रूप में एवं मुनिधर्म-श्रावकधर्म के रूप में जानो। तीन प्रकार से जानना हो तो सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञानसम्यक्चारित्र, द्रव्य-गुण-पर्याय और मोह-राग-द्वेष की हेयोपादेयता को जानो। इसीप्रकार चार भेदों में चार अनुयोगों द्वारा जिनशासन का रहस्य एवं चार कषायों और चार गतियों के परिचय द्वारा अध्यात्म के रहस्य को जाना जाता है। पाँच की संख्या मे पंच परमेष्ठी, पाँच समवाय, पाँच पाप, पाँच इन्द्रियाँ और इनके विषय पाँच अणुव्रतों की जानकारी द्वारा भी आध्यात्मिक दृष्टिकोण जाना जाता है। छह के रूप में छह द्रव्य, छह सामान्य गुण, छह आवश्यक एवं छह काय के जीवों की पहचान द्वारा तत्त्वपरकचिन्तन होता है। सात की संख्या में सात तत्त्व, सात नय, सात व्यसन, आठ में आठ कर्म, अष्टंभू (सिद्धशिला)। नौ में - नौ पदार्थ, दस धर्म, ग्यारह प्रतिमायें, बारह व्रत, तेरह प्रकार का चारित्र, चौदह गुणस्थान, चौदह मार्गणास्थान, चौदह जीव समास । पन्द्रह प्रकार का प्रमाद, सोलह कारण भावनायें आदि विषयों का सरल, संक्षिप्त वर्णन यथास्थान इस ग्रन्थ में आ गया है। इन सब उपर्युक्त विषयों में आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य अमृतचन्द्र, आचार्य उमास्वामी, आचार्य क
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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