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| उत्तर - हाँ ! मूलरूप से कर्म आठ प्रकार के होते हैं। इन आठ प्रकार के कर्मों में ज्ञानावरणी, || दर्शनावरणी, मोहनीय और अन्तराय हो चार घातिकर्म कहलाते हैं और वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये
चार अघातिकर्म कहलाते हैं। जो जीव के अनुजीवी गुणों का घात करने में निमित्त हों वे घातिकर्म हैं और जो कर्म आत्मा के अनुजीवी गुणों के घात में निमित्त न हों उन्हें अघातिकर्म कहते हैं।
प्रश्न - "ज्ञान पर आवरण डालनेवाले कर्म को ज्ञानावरण और दर्शन पर आवरण डालने वाले कर्म | भ को दर्शनावरण कहते होंगे?"
उत्तर - "सुनो ! जब आत्मा स्वयं अपने ज्ञान भाव का घात करता है अर्थात् ज्ञान-शक्ति को व्यक्त नहीं करता तब आत्मा के ज्ञानगुण के घात में जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे ज्ञानावरण कहते हैं।"
और जब आत्मा स्वयं अपने दर्शन-गुण (भाव) का घात करता है तब दर्शन-गुण के घात में जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे दर्शनावरण कहते हैं। ज्ञानावरण पाँच प्रकार का और दर्शनावरण नौ प्रकार का होता है। ___ “और मोहनीय...........?"
"जीव अपने स्वरूप को भूलकर अन्य को अपना माने या स्वरूपाचरण में असावधानी करे तब जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है - दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । मिथ्यात्व आदि तीन भेद दर्शन मोहनीय के हैं और २५ कषायें चारित्र मोहनीय के भेद हैं।"
“अब घाति कर्मों में एक अन्तराय और रह गया ?"
"हाँ, जीव के दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य के विघ्न में जिस कर्म का उदय निमित्त हो, उसे || अन्तराय कर्म कहते हैं।"
अब कृपया अघाति कर्मों को भी...........?
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