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यह राजा हरि और उनके नाम पर चले यशस्वी हरिवंश की उत्पत्ति का प्रथम चरण है। इन राजा | हरि के महागिरि नामक पुत्र हुआ। महागिरि के उत्तम नीति का पालक हिमगिरि पुत्र हुआ। हिमगिरि | के वसुगिरि और वसुगिरि के 'गिरि' नामक पुत्र हुआ।
ये सभी यथायोग्य स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त हुए, तत्पश्चात् हरिवंश के तिलकस्वरूप इन्द्र के समान सैकड़ों राजा हुए जो क्रम से विशाल राज्य और तप का भार धारण करते हुए कुछ तो मोक्ष गये और कुछ स्वर्ग गये।
इसप्रकार क्रम से बहुत राजाओं के होने पर उसी हरिवंश में बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के जीव की स्वर्ग से आयु पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व मगध देश का स्वामी राजा सुमित्र हुआ। वह विशिष्ट ज्ञान से विभूषित था। वह अपनी जिनभक्त प्रिया पद्मावती के साथ सुख का उपभोग करता हुआ चिरकालतक शासन करता रहा।
ज्ञातव्य है कि राजा सुमुख और वनमाला के जीव ही हरिवंश के जन्मदाता राजा आर्य और रानी | मनोरमा के पूर्वभव के जीव हैं।
राजा सुमुख और वनमाला राजा सुमुख का बाह्य व्यक्तित्व प्रतापवन्त, वीर्यवान, शारीरिक सौन्दर्यवान, अनेक कलाओं में निपुण, प्रजारक्षक, दुष्टों का निग्रह और सज्जनों का अनुग्रह करनेवाला था। साथ ही धर्म, अर्थ एवं काम पुरुषार्थों में परस्पर सामंजस्य स्थापित करते हुए आगत ऋतुओं के अनुकूल भोगों में तन्मय होना भी उनकी रुचि का विषय था।
भूमिकानुसार भोग तो ज्ञानी/धर्मात्माओं के भी होते हैं; परन्तु राजा सुमुख से इस विषय में कुछ | अति हो दिखाई गई है। वह अनेक रानियों के होने पर भी परस्त्री में आसक्त हो गया था। फिर भी उसका परभव बिगड़ा नहीं, यह कौतूहल और जिज्ञासा का विषय है, इसका समुचित समाधान भी इसी |
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