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| भगवान मुनिसुव्रत का जन्म, राजा वसु का वृत्तान्त, विष्णुकुमार मुनि का चरित्र, सेठ पुत्र चारुदत्त का चरित्र, बलदेव की उत्पत्ति, कंस, जरासंध, सिंहरथ, राजा उग्रसेन, श्रीकृष्ण के पिता कुमार वसुदेव का अनेक सर्गों में वर्णन तथा भगवान नेमिनाथ के भवतापहारी चरित्र, अनेक सर्गों में कृष्ण की उत्पत्ति, गोकुल में कृष्ण की बाल चेष्टायें, बलदेव के उपदेश से समस्त शास्त्रों का ग्रहण, श्रीकृष्ण के जीवन सम्बन्ध में एवं कृष्ण से संबंधित संपूर्ण परिवार का प्रासंगिक विस्तृत वर्णन है।
भगवान नेमिनाथ के कथानक में उनकी दिव्यध्वनि के माध्यम से ६३ शलाका पुरुषों की उत्पत्ति, तीर्थंकरों के कालसंबंधी अन्तर का विस्तार, द्वीपायन मुनि के क्रोध की घटना, पाण्डवों के तप आदि की चर्चा जो-जो भी महत्त्वपूर्ण प्रेरणादायक वैराग्यवर्द्धक प्रसंग समय-समय पर घटित हुए, प्रस्तुत ग्रन्थ में उन सभी को यथास्थान सविस्तार लिखा गया है।
दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ के तीर्थकाल में हरिवंश की उत्पत्ति हुई, उसी हरिवंश का परिचय हमें मोक्षमार्ग प्रकट करने के लिये प्रेरणा स्रोत बनेगा। अत: प्रस्तुत हरिवंश कथा में इन्हीं विषयों की विशेष चर्चा की गई है।
दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ भगवान के तीर्थकाल में राजा आर्य ने अपने भुजदण्ड से समस्त राजाओं को वश में करके अपना आज्ञाकारी बनाया और प्रेममूर्ति मनोरमा के साथ चिरकाल तक राजसुख एवं विषयसुख का उपभोग किया; परन्तु वह दम्पति उस सांसारिक सुख से तृप्त नहीं हुआ, होता भी कैसे? राज-काज और विषयों में सुख है ही कहाँ? जो उसके मिलने से व्यक्ति तृप्त हो जाये। कहा भी है -
जो संसार विर्षे सुख होता, तीर्थंकर क्यों त्यागें।
__ काहे को शिवसाधन करते, संयम सों अनुरागे ।। कालान्तर में इन्हीं राजा आर्य और मनोरमा के 'हरि' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो इन्द्र के समान || | प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। राजा आर्य और रानी मनोरमा ने चिरकाल तक पुत्र की असीम धन-सम्पत्ति
और अपार वैभव का सुख भोगा। तत्पश्चात् दोनों अपने-अपने कर्मों के अनुसार परलोकवासी हो गये।।
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