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५. कौरव और पाण्डव पाण्डवों एवं कौरवों की पूर्व परम्परा में राजा धृत के धृतराज नामक पुत्र हुआ। उसकी तीन पत्नियाँ थीं- १. अम्बिका, २. अम्बालिका, ३. अम्बा। उनमें अम्बिका के धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और ॥ अम्बा से विदुर नामक पुत्र हुए।
राजा धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि सौ पुत्र थे, जो परस्पर एक-दूसरे का हित करने में तत्पर रहते थे। राजा पाण्डु की पत्नी का नाम कुन्ती थी। कुन्ती से युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम - ये तीन पुत्र हुए। इन्ही पाण्डु की माद्री नामक दूसरी पत्नी से नकुल और सहदेव हुए। पाण्डु से उत्पन्न होने के कारण ये पाण्डव कहलाए।
जब राजा पाण्डु और उनकी पत्नी माद्री का निधन हो गया, तब पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर आदि पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधनादि कौरव राज्य के बंटवारे को लेकर परस्पर विरोधी हो गये। जब इनका विरोध बढ़ने लगा तब भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, विद्वान विदुर और मंत्री शकुनि आदि ने मध्यस्थ बनकर राज्य के बराबर दो भाग कर दिये। एक भाग ५ पाण्डवों को और दूसरा भाग दुर्योधनादि १०० कौरवों को दे दिया; क्योंकि बंटवारा पाँच पाण्डवों और सौ कौरवों के बीच नहीं होना था; बल्कि इन दोनों के पिता की पीढ़ी में पाण्डु और धृतराष्ट्र के बीच होना था, अत: बंटवारा में मध्यस्थता करनेवालों ने किसी के साथ पक्षपात और अन्याय नहीं किया था; फिर भी राज्य का यह बंटवारा कौरवों को अभीष्ट नहीं था, अतः वे इस बँटवारे से संतुष्ट नहीं हुए। उनकी विरोधी भावनायें बढ़ती ही रहीं।
यद्यपि कर्ण भी कुन्ती और पाण्डु का ही पुत्र होने से पाण्डवों का सगा भाई था; किन्तु वह पाण्डु के साथ विधिवत् हुए विवाह के पहले गुप्तरूप से गाँधर्व विवाह करके लोकदृष्टि से कुन्ती के उदर से कौमार्यकाल में ही हो गया था। अत: वह पाण्डु की अवैधानिक सन्तान होने से राज्य के बँटवारे में उसे कोई हिस्सा नहीं मिला। इसकारण कर्ण को भी पाण्डवों से विरोध हो गया था। 'शत्रु का शत्रु मित्र हो जाता है' इस उक्ति के अनुसार कर्ण की कौरवों से मित्रता हो गई।
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