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पर सापेक्ष कथन है, वह केवल व्यवहारनय ( नैगमनय) की अपेक्षा से किया गया है ।
प्रश्न : आत्मा की कौन-कौन-सी शक्तियाँ वस्तु के स्वतंत्र षट्कारकों की सिद्धि में साधक हैं ? वैसे तो सभी शक्तियाँ वस्तु की स्वतंत्रता की ही साधक हैं, परन्तु कतिपय प्रमुख शक्तियाँ इसप्रकार हैं१. भावशक्ति :- इस शक्ति के कारण प्रत्येक द्रव्य अन्वय (अभेद) रूप से सदा अवस्थित रहता है । यह शक्ति पर कारकों के अनुसार होनेवाली क्रिया से रहित भवनमात्र है, अत: इस शक्ति द्वारा द्रव्य को पर कारकों से निरपेक्ष कहा है, इससे द्रव्य की स्वतंत्रता स्वतः सिद्ध हो जाती है।
२. क्रियाशक्ति :- इस शक्ति के कारण प्रत्येक द्रव्य अपने स्वरूप सिद्धकारकों के अनुसार उत्पाद-व्यय रूप अर्थक्रिया करता है।
३. कर्मशक्ति :- इस शक्ति से प्राप्त होने वाले अपने सिद्धस्वरूप को द्रव्य स्वयं प्राप्त होता है । ४. कर्त्ताशक्ति :- इस शक्ति से होने रूप स्वतः सिद्ध भाव का यह द्रव्य भावक होता है।
५. करण शक्ति :- इससे यह द्रव्य अपने प्राप्यमाण कर्म की सिद्धि में स्वतः साधकतम होता है। ६. सम्प्रदान शक्ति :- इससे प्राप्यमाण कर्म स्वयं के लिए समर्पित होता है। ७. अपादान शक्ति :
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इससे उत्पाद - व्ययरूप होने पर भी द्रव्य सदा अन्वय रूप से ध्रुव बना रहता है। ८. अधिकरण शक्ति :- इससे भव्यमात्र ( होने योग्य) समस्त भावों का आधार स्वयं द्रव्य होता है। ९. सम्बन्ध शक्ति :- प्रत्येक द्रव्य में सम्बन्ध नाम की भी एक ऐसी शक्ति है, जिससे किसी भी द्रव्य का अपने से भिन्न अन्य किसी द्रव्य के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इससे यह सूचित होता है कि प्रत्येक द्रव्य अपना ही स्वामी है।
इसप्रकार वस्तु के स्वतंत्र षट्कारकों की सिद्धि में उपर्युक्त शक्तियाँ साधक हैं । इन्हीं से प्रत्येक द्रव्य की सभी पर्यायें कारकान्तर निरपेक्ष सिद्ध होती हैं । यह वस्तुस्वातन्त्र्य वीतरागता का प्रबल हेतु है। • नोट - इस विषय की विशेष और स्पष्ट जानकारी के लिए लेखक की कृति 'षट्कारक : एक अनुशीलन' अवश्य पढें ।
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