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यहाँ पाण्डवों और कौरवों के कथा प्रसंग में कुरुवंश की पूर्व परम्पराओं का वर्णन है। हरिवंश की पूर्व परम्परा दसवें तीर्थंकर के काल में हुए राजा हरि से चली है। यहाँ कुरुवंश की पूर्व परम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के समकालीन बताई जा रही है। दानतीर्थ के प्रवर्तक महाराजा श्रेयान्स और सोमप्रभ नामक दो राजा हुए। वे कुरुवंश के तिलक थे। उनमें सोमप्रभ से जयकुमार नामक पुत्र हुआ और जयकुमार से कुरु नामक पुत्र हुआ, उसी राजा कुरु से कुरुवंश चला।
इसी वंश में चतुर्थ चक्रवर्ती सनतकुमार, पंचम चक्रवर्ती शान्तिनाथ, षष्ठम चक्रवर्ती कुन्थुनाथ एवं सप्तम चक्रवर्ती अरनाथ हुए हैं अर्थात् शान्ति, कुन्थ एवं अरनाथ - ये तीनों तीर्थंकर चक्रवर्ती व कामदेव पद के धारक भी थे और इसी वंश के तिलक स्वरूप थे।
इनके बाद क्रम-क्रम से बहुत राजाओं के हो जाने पर पद्म चक्रवर्ती भी इसी वंश में हुए। तदनन्तर शतसहस्त्रों राजाओं के होने के क्रम में राजा धृत से धृतराज नामक पुत्र हुआ। राजा धृतराज की अम्बा, अम्बिका
और अम्बालिका नाम की तीन पत्नियाँ थीं। उनमें अम्बिका से धृतराष्ट्र अम्बालिका से पाण्डु और अम्बा से ज्ञानप्रवर विदुर नामक पुत्र हुए। धृतराज के भाई रुक्म भीष्म पितामह के पिता थे और भीष्म की माता का नाम गंगा था।
राजा धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि सौ पुत्र थे, जो परस्पर एक-दूसरे का हित करने में तत्पर रहते थे। राजा पाण्डु की पत्नी का नाम कुन्ती था। कुन्ती से युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम - ये तीन पुत्र हुए। इन्ही पाण्डु की माद्री नामक दूसरी पत्नी से नकुल और सहदेव हुए। पाण्डु से उत्पन्न होने के कारण ये पाण्डव कहलाए। कर्ण || भी कुन्ती के उदर से जन्मे पाण्डु पुत्र ही थे; किन्तु वह पाण्डु के साथ विधिवत हुए विवाह के पहले कुन्ती ॥२०