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के मन में जो भी छोटी-मोटी शंकायें होती हैं। उन सबका समाधान बिना उत्तर दिये अपने आप होता है। || पद्मरथ चक्रवर्ती के प्रश्न के उत्तर में यह समाधान हुआ कि यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के नौवें नारायण के हित में तत्पर रहनेवाले नारद हैं और नौवें नारायण श्रीकृष्ण के अपहरण हुए पुत्र की जानकारी प्राप्त करने तथा उसका पूरा पता पूछने आये हैं, जो कि अपनी सोलह वर्ष की उम्र में सोलह प्रकार के विशेष लाभ प्राप्तकर अपने माता-पिता से मिलेगा।
प्रज्ञप्ति नामक महाविद्या से जिसका पराक्रम चमक उठेगा ऐसा महाभाग्यशाली तद्भव मोक्षगामी वह प्रद्युम्नकुमार इस पृथ्वी पर समस्त देवों के लिए भी अजेय हो जायेगा।
चक्रवर्ती पद्मरथ के मन में जिज्ञासा हुई कि उस प्रद्युम्न का चरित्र कैसा होगा? और वह किसकारण हर लिया गया है ?
समाधान में प्रद्युम्न का जो चरित्र उन्हें ज्ञात हुआ, वह इसप्रकार है -
सोमशर्मा और अग्रिला दम्पति से अग्निभूत और वायुभूत नाम के दो पुत्र हुए। ये दोनों ही पुत्र वेदवेदार्थ में अत्यन्त निपुण थे, इससे वे बृहस्पति के समान दैदीप्यमान होने लगे। जातिवाद से गर्वित वातावरण में पले-पुसे ये दोनों ही पुत्र युवा होने पर भोग-वासना में लीन हो गये। जब वे सोलह वर्ष की युवक अवस्था || को प्राप्त हुए तो कामुक हो स्त्री रमण को ही सम्पूर्ण सुख मानने लगे और लोक-परलोक की हितकर कथा मात्र से द्वेष करने लगे।
किसी समय बहुश्रुतज्ञ आचार्य नन्दीवर्द्धन ससंघ उसी शालिग्राम के बाहर उपवन में कुछ दिन के लिए ठहर गये। ग्राम के सभी धर्मनिष्ठ व्यक्ति उनके दर्शनार्थ आने-जाने लगे। उन्हें देख दोनों ब्राह्मण पुत्रों ने जनसमूह से उपवन में जाने का कारण पूछा। कारण जानकर उन अहंकारी अग्निभूत-वायुभूत ने सोचा - हम लोगों से बढ़कर दूसरा वन्दनीय है ही कौन ? चलो हम भी चलकर देखें तो सही - ऐसे अहंकार से भरे दोनों भाई उपवन में गये। जब वे वहाँ पहुँचे उस समय अवधिज्ञानी साधु शिरोमणि आचार्य नन्दीवर्धन समुद्र के समान अपार जनसमूह के मध्य विराजे धर्म का उपदेश दे रहे थे।