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बालक के शरीर में १००८ शुभ लक्षण थे तथा वह जन्म से ही मति-श्रुत-अवधि - तीन ज्ञान के धारी थे।
जन्मकल्याणक का महोत्सव मनाने आये इन्द्रगण और देवगणों के मन-मयूर हर्षातिरेक से नाच रहे थे। नाचते-गाते समस्त इन्द्र बाल तीर्थंकर का जन्माभिषेक करने के लिए जब तक सूर्यपुर (सौरीपुर) आये, तब तक यहाँ प्रसन्नचित्त दिक्कुमारियों द्वारा बाल तीर्थंकर का समस्त जातकर्म होता रहा । आभूषणों से विभूषित जगतप्रसिद्ध विजया, वैजयन्ती, अपराजिता, जयन्ती, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना और नन्दोत्तरा नामक देवियाँ निर्मल जल से भरी हुई झारियाँ लिए उनके स्वागत में खड़ी थीं।
यशोधरा, सुप्रसिद्धा, सुकीर्ति सुस्थिरता, प्रणधि, लक्ष्मीमती, चित्रा और वसुन्धरा अपने-अपने गुण और रूप लावण्य में अपने नामों को सार्थक करती हुई मणिमय दर्पण लेकर खड़ी थीं।
इला, नवयिका, सुरा, पीता, पद्मावती, पृथ्वी, प्रवरकांचना और चन्द्रिका नामक देवियाँ माता पर सफेद | छत्र लगाये सेवा में उपस्थित थी। ___ श्री, धृति, आशा, वाढणी, पुण्डरीकिणी, अलम्बुसा, मिश्रकेसी और ह्री आदि देवियाँ हाथों पर चमर लिए खड़ी थीं।
देदीप्यमान कनक चित्रा, चित्रा, त्रिशरा और सूत्रामणि विद्युतकुमारी देवियाँ बालक नेमि के समीप अपनी चेष्टाओं से मेघों के बीच बिजली के समान शोभायमान हो रही थीं एवं समस्त विद्युत कुमारियों में प्रधान रुचक प्रभा, रुचका, रुचकाभी और रुचकोज्वला तथा दिक्कुमारियों में प्रधान विजय आदि चार देवियाँ विधिपूर्वक भगवान का जातकर्म कर रहीं थीं। ___ बाल तीर्थंकर नेमिकुमार के जन्मोत्सव के पूर्व ही कुबेर ने सूर्यपुर (सौरीपुर) की अद्भुत शोभा बना रखी थी। महलों पर बड़ी-बड़ी, ऊँची-ऊँची ध्वजायें फहरा रही थीं। ऐसा लगता था मानो यह नगर इन्द्रलोक की शोभा को भी फीका कर रहा है।
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