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________________ वन में तुम्हारा शत्रु (घातक) बढ़ रहा है, उसकी खोज करना चाहिए। तदनन्तर शत्रु के नाश को भावना से कंस ने तीन दिन का उपवास किया। फलस्वरूप पूर्वभव में कंस ने, सेवा के लिए आई जिन देवियों का यह कहकर वापस कर दिया था कि अभी कुछ काम नहीं, आगे कभी आवश्यकता पड़ने पर सहायता करना। वे देवियाँ पुन: उपस्थित होकर कंस से बोली - हम तुम्हारे पुण्य फल से प्राप्त हुईं देवियाँ हैं। अब आप हमारे लायक सेवा कार्य बताइए। नारायण एवं बलभद्र के अलावा यदि किसी शत्रु को नष्ट करना हो तो कहिए। | कंस ने कहा - हमारा कोई वैरी कहीं गुप्त रूप से बढ़ रहा है, तुम उस पर दया न करके शीघ्र ही उसे || मृत्यु लोक में पहुँचा दो। कंस का आदेश पाकर वे देवियाँ श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास करने लगीं। एक देवी भयंकर पैनी चोंच वाले पक्षी का रूप धरकर बालक कृष्ण पर चोंच से प्रहार करने लगी, किन्तु कृष्ण ने उसकी चोंच को पकड़कर इतने जोर से दबाया कि वह प्रचण्ड शब्द कर चिल्लाती हुई भाग गई। दूसरी कुपूतना बनकर आयी और कृष्ण को अपने विषैले स्तनपान कराने लगी, किन्तु देवताओं से अधीष्ठित श्रीकृष्ण का मुख अत्यन्त कठोर हो गया और ज्यों ही उन्होंने जोर लगाकर स्तन चूसा तो वह पीड़ा से चिल्लाने लगी। तीसरी देवी शकट का रूप धर कर डराने लगी; किन्तु उसे भी बालकृष्ण ने लात मारकर भगा दिया। बालक कृष्ण यशोदा के पास नानाप्रकार की बाल सुलभ क्रियाएँ करके माता यशोदा का मनोरंजन करते। कभी छाती के बल सरकते। कभी लड़खड़ाते, कभी दौड़े-दौड़े फिरते, कभी मधुर आलाप करते, कभी मक्खन चुराकर खाते। एक दिन उपद्रव की अधिकता के कारण यशोदा ने कृष्ण का पैर रस्सी से बांध दिया, उसी दिन शत्रु की | दो देवियाँ जमल व अर्जुन वृक्ष का रूप रखकर, उन्हें पीड़ा देने लगीं, किन्तु कृष्ण ने उस बंधन की दशा | में भी दोनों देवियों को मारकर भगा दिया। v_048 EME FOR FREE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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