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________________ (१४६|| के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को सातवें ही महीने में अलक्षित रूप से उत्पन्न हो गये । नवजात बालक का शरीर शंख, चक्र आदि उत्तमोत्तम लक्षणों से युक्त था। ऐसे श्रीकृष्ण ने अपनी कान्ति से देवकी के प्रसूतिगृह को रि | प्रकाशमान कर दिया। उस समय उस पुण्यात्मा के प्रभाव से स्नेही बन्धुजनों के घरों में अपने आप अच्छे-अच्छे निमित्त प्रगट | हुए और शत्रुओं के घरों में भय उत्पन्न करनेवाले निमित्त प्रगट हुए। उन दिनों सात दिन से घनघोर वर्षा हो रही थी, फिर भी उत्पन्न होते ही बालक कृष्ण को मथुरा में राजा कंस के महल में देवकी के प्रसूतिगृह से बलदेव ने उठा लिया और पिता वसुदेव उन पर छाता तानकर रात्रि के समय ही प्रसूति घर से बाहर निकल आये। उस समय सब नगरवासी तो सो ही रहे थे। कंस और उसके सुभट भी गहरी नींद में निमग्न थे। यद्यपि गोपुर द्वार के किवाड़ बन्द थे; परन्तु पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के चरण युगल का स्पर्श होते ही उन किवाड़ों में निकलने योग सांध (स्थान) बन गया, जिससे वे बाहर निकल गये। संयोग से उसीसमय पानी की कुछ बूंदे बालक कृष्ण की नाक में चली गईं, जिससे उसे छींक आ गई। उस छींक का शब्द (ध्वनि) अत्यन्त गंभीर थी। उस छींक की आवाज से उसी गोपुर के द्वार के ऊपर सोते हुए कंस के पिता जाग गये। उसीसमय एक आवाज आई कि 'तू निर्विघ्न रूप से चिरकाल तक जीवित रहे।' गोपुर के ऊपर कंस ने अपने पिता राजा उग्रसेन को बन्धक बना कर रखा था। उक्त आशीर्वाद उन्हीं ने दिया था। उनके इस आशीर्वाद को सुन बलदेव ने निवेदन किया कि हे पूज्य ! इस रहस्य को रहस्य ही रखा जाये । देवकी के इस पुत्र से ही आपका भी छुटकारा होगा। उग्रसेन ने तथास्तु अर्थात् ऐसा ही होगा कहकर उन्हें आश्वस्त किया। उग्रसेन के द्वारा आश्वासन और आशीर्वाद प्राप्त कर वे शीघ्र ही नगरी से बाहर निकल गये । यद्यपि एक बैल उन्हें मार्ग दिखाता हुआ वेग से आगे-आगे जा रहा था। फिर भी मार्ग में यमुना का अखण्ड प्रवाह एक बाधा लग रही थी, परन्तु श्रीकृष्ण के पुण्यप्रभाव से नदी का महाप्रवाह शीघ्र ही रुक गया और यमुना नदी को पार कर वे वृन्दावन की ओर बढ़ गये। v048 FME FREE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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