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मानकर ही भूख-प्यासादि सहते रहे । ह ॥ तापस वशिष्ठ ने दिगम्बर मुनि का वेष तो धर लिया था और मुनिचर्या के सब नियम भी गुरु से समझ
लिए थे। तदनुसार बाह्याचरण में भी कोई कमी नहीं थी किन्तु तत्त्वज्ञान न होने से वह अपने उस पुराने
अपमान को भूल नहीं पाया था, वैर-विरोध को नष्ट नहीं कर पाया था; जैन तत्त्वज्ञान हुए बिना पर पदार्थों ॥ में एकत्व एवं कर्तृत्व का भाव कम नहीं होता और इसके बिना अहंकार नष्ट नहीं होता। पर में इष्टानिष्ट की
बुद्धि भी नष्ट नहीं हो पाती। बाह्य क्रियायें तो मात्र साधन हैं। साध्य तो वीतरागता है। | यही कारण था कि वह तापस वशिष्ठ मुनि अपने उस अपमान को नहीं भूल पाया, जो राजा उग्रसेन के दरबार में प्रियंगुलतिका पनिहारिन के द्वारा नकली तापस सिद्ध होने के कारण हुआ था। उस वशिष्ठ जैन | मुनि ने यह निदान बाँध लिया कि मैं उग्रसेन का पुत्र होकर अपने अपमान का बदला लूँ।' निदान के कारण वह मुनिपद से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्व गुणस्थान में आ गया और उसी समय मरकर राजा उग्रसेन की रानी पद्मावती के उदर में कंस के रूप में आ गया।
जब वह वशिष्ठ मुनि का जीव कंस के रूप में पद्मावती के गर्भ में था, तब पद्मावती को एक दोहला हुआ, खोटा स्वप्न आया, जिसके कारण वह एकदम दुर्बल हो गई। राजा ने दुर्बलता का कारण जानना चाहा तो पहले तो पद्मावती टालती रही, फिर भी राजा उग्रसेन का आग्रह देख रानी ने दुःख भरे मन से कहा कि - 'हे नाथ ! मुझे ऐसा दोहला हुआ है कि 'मैं आपका पेट फाड़कर आपका रुधिर पीऊँ । नौ माह बाद पद्मावती ने ऐसा पुत्र उत्पन्न किया, जिसकी मुखाकृति कुटिल एवं रौद्र थी। इस कारण रानी ने उसे कांस की पेटी (मंजूषा) में बन्द करके यमुना के तेज प्रवाह में प्रवाहित कर दिया। वह मंजूषा बहतेबहते कौशाम्बी नगरी पहुँची। वहाँ एक कलारिन (मद्य व्यवसायी महिला) को मिल गई, उसे खोला तो उसमें एक बालक जिन्दा पाया। कांस की पेटी में पाने से उसने उसका नाम कंस रखा।" हे राजन् वसुदेव! पूर्वभव में मुनि अवस्था में निदान के दोष से दूषित होकर इस कंस ने पिता का निग्रह |
न किया है, उन्हें कैद करके रखा। आगे चलकर तुम्हारा पुत्र (कृष्ण) इसे मारेगा और इसके पिता राजा उग्रसेन
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