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| राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती का पुत्र और जरासंध का भान्जा ही है, इसे पद्मावती ने किसी कारणवश | मंजूषा में बन्द करके यमुना में बहा दिया था। यह बात मंजूषा में प्राप्त पत्र से ज्ञात हो गई। इससे संतुष्ट होकर
जरासंध ने अपने भानजे कंस को अपनी पुत्री जीवद्यशा ब्याह दी। | कंस ने जब यह समझा कि उसके पिता उग्रसेन ने उसे उत्पन्न होते ही नदी में बहाया था तो उसे पिता | पर बहुत क्रोध आया। एतदर्थ उसने अपने श्वसुर जरासंध से मथुरा का राज्य माँगा। मथुरा का राज्य पाकर सब प्रकार की सेना युक्त कंस जीवद्यशा के साथ मथुरा गया। कंस निर्दय तो था ही, वहाँ जाकर उसने पिता उग्रसेन के साथ युद्ध ठान दिया तथा युद्ध में उन्हें जीतकर बांध लिया। तत्पश्चात् उस उग्र और क्षुद्र कंस ने अपने पिता को नगर के मुख्य द्वार पर कैद कर लिया।
वसुदेव के उपकार का आभारी होने से कंस उनका प्रत्युपकार करना तो चाहता था; परन्तु निर्णय नहीं कर पा रहा था कि किसप्रकार प्रत्युपकार करूँ ? वह वसुदेव का शिष्य होने से अपने आप को वसुदेव का किंकर समझता था। एक दिन वसुदेव को बड़ी भक्ति से प्रार्थना करके मथुरा ले आया। वहाँ लाकर उन्हें गुरुदक्षिणा के रूप में अपनी देवकी नामक बहिन प्रदान कर उसके साथ विवाह करा दिया।
तदनन्तर वसुदेव कंस के आग्रह से देवकी के साथ कुछ दिन मथुरा में ही रहे। शत्रुओं को सन्तप्त करनेवाला एवं जरासंध का अतिप्रिय कंस शूरसेन नामक विशाल देश की राजधानी मथुरा का शासन करने लगा। ____ एक दिन कंस के बड़े भाई अतिमुक्तक मुनि आहार के समय राजमहल में आये ? कंस की पत्नी जीवद्यशा नमस्कार कर ओढ़नी दिखाती हुई उनके सामने खड़ी हो गई और हंसती हुई क्रीड़ा भाव से कहने लगी कि यह आपकी बहिन देवकी का आनन्द वस्त्र है, इसे देखिये।
संसार की स्थिति को जाननेवाले मुनिराज उस मर्यादा रहित एवं राज्यवैभव से मत्त जीवद्यशा को रोकने के लिए वचनगुप्ति तोड़कर बोले कि - "अहो ! तू हँसी कर रही है। परन्तु तेरी यह इसतरह हँसी करना |
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