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क्योंकि उन्होंने नरभक्षी राक्षस को समाप्त करके पूरे नगर को उसके आतंक और भय से मुक्त कर बहुत बड़ी सुरक्षा प्रदान की थी।
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यह नरभक्षी राक्षस वस्तुतः राक्षस नहीं, बल्कि मांसाहारी राजकुमार था, जो कलिंगदेश के कांचनपुर | नगर के जितशत्रु राजा का सौदास नामक पुत्र था । सौदास को मयूर मांस प्रिय था, एक दिन उसके मांस | को बिल्ली खा गई, रसोइया घबराया और वह दौड़ा-दौड़ा श्मशान में गया। वहाँ उसे किसी मृत बालक र | का शव मिल गया जो अभी-अभी कोई गड्ढे में गाड़कर गया था । रसोइये ने उस नरमांस को पकाकर सौदास को खिलाया । वह सौदास को प्रतिदिन के मांसाहार से अधिक स्वादिष्ट लगा। उसने रसोइए से प्रेम से पूछा तो रसोइए ने सब सच-सच बता दिया । बस, उस दिन से राजकुमार के आदेश से वह रसोइया नगर | से प्रतिदिन एक बालक की चोरी कराकर उसका मांस पकाकर राजकुमार को खिलाने लगा। बाद में पिता जितशत्रु के मारे जाने से वह राजकुमार स्वयं राजा बन गया ।
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फिर तो उसके आतंक से खुलकर प्रतिदिन एक बालक की हत्या होने लगी, इससे सब नगरवासी दुःखी थे; जब कुमार वसुदेव ने उस नरभक्षी राजा का अन्त कर दिया तो सभी नगरवासियों ने राहत की सांस ली और वसुदेव का खूब स्वागत-सत्कार किया ।
तदनन्तर वहाँ से चलकर कुमार वसुदेव ने अचल ग्राम के सेठ की वनमाला नामक पुत्री के साथ विवाह किया और वहाँ से वनमाला को साथ लेकर वे वेदसामपुर पहुँचे ।
वीर वसुदेव ने वेदसामपुर के राजा कपिल को युद्ध में जीत कर उसकी कपिला नामक पुत्री के साथ विधिपूर्वक विवाह किया । कपिला से कपिल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ।
जिस नीलकंठ विद्याधर ने वसुदेव की पत्नी नीलयंशा का पहले अपहरण किया था, वह विद्याधर गन्धहस्ती (हाथी) का रूप धरकर वेदसामपुर आया । वसुदेव उसे बन्धन में डालने के लिए ज्यों ही उस पर आरूढ़ हुए त्यों ही गन्धहस्ती वसुदेव को हरण कर आकाश में ले गया । वसुदेव ने जब उसे मुट्ठियों के प्रहार
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