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प्रथम संस्करण : २ हजार (दिनांक ३१ मार्च २००७) २६०७ वाँ भगवान महावीर जन्मोत्सव
मूल्य : ८ रुपये
प्रकाशकीय 'ज्ञानधारा-कर्मधारा' नामक इस नयी साहित्य कृति को पाठकों के करकमलों में देते हुए हमें सात्त्विक एवं तात्त्विक आनंद हो रहा है। साथ ही इस कृति के उद्गम का कारण बताए बिना भी मैं रह नहीं पा रहा हूँ।
श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट, मुम्बई द्वारा प्रतिवर्ष अगस्त माह में श्री टोडरमल स्मारक भवन में आध्यात्मिक शिक्षण शिविर का आयोजन किया जाता है। ___ इस क्रम में वर्ष २००६ के अगस्त शिविर हेतु श्री कुन्दकुन्द कहान दिग. जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट से मुझे एक पत्र प्राप्त हुआ; जिसमें शिविर में गुणस्थान विषय को छोड़कर अन्य विषय की कक्षा लेने के संबंध में मुझसे कहा गया था। ___ यद्यपि मैं तत्त्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि अनेक मूल ग्रंथों में से किसी एक ग्रंथ को लेकर कक्षा ले सकता था; तथापि मन में विचार आया कि जिसप्रकार अन्य विद्वानों के विषय की अपेक्षा मेरा गुणस्थान विषय नया एवं निराला है, उसीप्रकार इस शिविर के कक्षा का विषय भी ऐसा ही कुछ नवीन होना चाहिये।
स्वाध्याय तो मेरे जीवन का अभिन्न अंग है ही। कुछ समय से मैं पण्डित दीपचन्दजी कासलीवाल रचित अनुभवप्रकाश ग्रन्थ पर आध्यात्मिक सत्पुरुषश्री कानजीस्वामी के प्रवचनों को पढ़ रहा था, जिसमें एक मिश्रधर्म अधिकार पढ़ने को मिला। मुझे यह विषय अत्यन्त प्रिय लगा। इसका एक कारण यह भी था कि मेरे विद्यार्थी जीवन में यह विषय मुझे स्पष्ट समझ में नहीं आता था
और स्वामीजी के प्रवचन पढ़ने से यही विषय मुझे अच्छीतरह विशेषरूप से स्पष्ट समझ में आ गया, अत: शिविर में मिश्रधर्म विषय पर ही कक्षा लेने का मैंने मानस बनाया और कक्षा ली, जिससे यह मिश्रधर्म विषय सभी को पसन्द
आया और कक्षा भी लोकप्रिय हो गई। __ मेरा उत्साह और बढ़ गया। आगम में अन्य जिन-जिन स्थानों पर मिश्रधर्म के संबंध में स्वामीजी के प्रवचन हुये हैं, उन सभी का संकलन करने का मैंने प्रयास किया।
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