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प्रश्नोत्तर विभाग में गुणस्थान प्रकरण को समझने में सहयोगी ऐसे कतिपय आवश्यक प्रश्नोत्तर विशेष संशोधन के साथ और जोड़ दिये गये हैं। चौदह गुणस्थानवाले तीसरे अध्याय में आमूलचूल परिवर्तन करके गुणस्थान-प्रवेशिका में जिनका संकेत मात्र किया था, उन सब बिन्दुओं को जिसप्रकार कक्षा में विस्तार से पढ़ाता हूँ, उसीप्रकार सम्पूर्ण विषय देने का प्रयास किया है। इससे कक्षा में न बैठनेवाले भी यदि स्वयं इसे अकेले में पढ़ेंगे तो भी उन्हें विषय सहज अवगत हो सकेगा।
उपरोक्त तीनों अध्यायों के पश्चात् मोक्षमार्ग हेतु जिन विषयों को समझना अनिवार्य है, ऐसे विषय - जैसे जीव बलवान है, कर्मबन्ध का नियम आदि परिशिष्ट में दिये गये हैं। ___इस अष्टम संस्करण में धवलागत गुणस्थान का अंश भी जोड़ दिया है; जिसमें ५० शंका-समाधान गर्भित हैं। इन शंका-समाधानों को अंग्रेजी में (१ से ५० तक) क्रमांक दिये गये हैं। इस संस्करण की भाषा की शुद्धता का श्रेय पं. श्री प्रवीणजी शास्त्री रायपुर को जाता है। अध्यात्मसम्बन्धी मतभेद रहते हुए भी आगरा निवासी करणानुयोग रसिक पं. श्री रतनलालजी बैनाड़ा का सहयोग हम भूल नहीं सकते। इन दोनों विद्वानों का भी हम आभार व्यक्त करते हैं।
सभी जिज्ञासु इसके माध्यम से अपने परिणामों को पहिचान कर आत्मकल्याण करें - यही मंगल कामना है।
- ब्र. यशपाल जैन श्री टोडरमल स्मारक भवन, ए-४, बापूनगर, जयपुर पताशे प्रकाशन संस्था घटप्रभा (बेलगांव -कर्नाटक) के
महत्त्वपूर्ण प्रकाशन मराठी कन्नड
विशेष ९. आप कुछ भी कहो संस्था द्वारा प्रकाशित १. आचार्य कुंदकुंददेव १०. सूक्ति-सुधा
छहढाला (कन्नड), २. णमोकार महामंत्र ११. शुद्धात्म सौरभ
योगसार (मराठी) के १२. कौंडेशनिंद कुंदकुंद ३. योगसार
१३. जिनधर्म-प्रवेशिका ऑडियो कैसेट भी ४. परमात्मप्रकाश हिन्दी
उपलब्ध हैं। ५. जिनधर्म-प्रवेशिका १४. गुणस्थान-विवेचन ६. जिनेन्द्र-अष्टक १५. जिनधर्म-प्रवेशिका
१६. क्षत्रचूडामणि ७. योगसार (पॉकेट साईज) १७. तत्त्ववेत्ता : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ८. कार्तिकेयानप्रेक्षा १८. योगसारप्राभृत-शतक
प्रश्न : जीव द्रव्य की परिभाषा जानने से क्या लाभ होते हैं ? उत्तर : जीव द्रव्य की परिभाषा जानने से हमें निम्नलिखित लाभ होते हैं -
१. जीव द्रव्य के सूक्ष्म-बादर आदि भेदों का ज्ञान होने से जीवदया की प्रेरणा मिलती है। कहा भी है -
“जीव-जाति जाने बिना दया कहाँ से होय" २. जीव का चारों गति में दुःखदायी भ्रमण जानने से मनुष्य पर्याय की दुर्लभता समझ में आती है और स्वयमेव ही वैराग्यभाव जागृत होता है।
३. जीवद्रव्य के भेद-प्रभेदों को जानने के कारण जीवादि सब द्रव्य-गुणपर्यायों को जाननेवाले केवली भगवान के सूक्ष्म एवं विशाल ज्ञान का बोध होता है एवं सर्वज्ञता के प्रति श्रद्धा अत्यन्त दृढ़ होती है।
४. जीवद्रव्य को जानने से स्वयमेव ही “मैं एक स्वतंत्र जीवद्रव्य हैं अन्य जीवद्रव्यों से एंव पुद्गलादि द्रव्यों से मेरा कुछ भी संबंध नहीं है" - ऐसा भेदज्ञान होता है।
५. जीव को पुद्गल द्रव्य से भिन्न जानते ही तत्त्व का सार समझ में आता है। इस सम्बन्ध में आचार्य पूज्यपाद कहते हैं -
“जीव जुदा पुद्गल जुदा, यही तत्त्व का सार।" ६. ज्ञान एवं आनंद की निरन्तर वृद्धि होती है।
७. इस विश्व में जीव द्रव्य अनंत हैं एवं सभी स्वतंत्र हैं; ऐसा जानने के कारण मैं किसी जीव का अच्छा-बुरा नहीं कर सकता और मेरा कोई भी कुछ बिगाड़-सुधार नहीं कर सकता, ऐसी प्रतीति होती है।
८. इस विश्व में एक लोकव्यापक ब्रह्मा ही चेतन है, अंगुष्ट मात्र आत्मा है, जगत में जीव ही नहीं है आदि मिथ्या मान्यताओं का निराकरण होता है।
९. निजात्मरूप का ज्ञान होने से परकर्तृत्व का भाव टूटता है।
१०. जीव द्रव्य को जानने के कारण जीवतत्त्व से जीवद्रव्य भिन्न है और जीवतत्त्व ही दृष्टि का विषय एवं ध्यान का ध्येय है; ऐसा निर्णय होता है एवं धर्म प्रगट करने का पुरुषार्थ जागृत होता है।