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________________ गुणस्थान विवेचन ६२. प्रश्न : कृष्टि (अनुकृष्टि) किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्मों के अनुभाग का क्रम से हीन-हीन होने को कृष्टि अथवा अनुकृष्टि कहते हैं। अर्थात् अनुभाग का कृष होना-घटना सो कृष्टि है। यह कृष्टि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के परिणामों के निमित्त से होती है। ६३. प्रश्न : बादरकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : अपूर्वस्पर्धक से भी विशेष अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को बादरकृष्टि कहते हैं। अर्थात् संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ का अनुभाग घटना - स्थूल खंड होना, सो बादरकृष्टि है। ६४. प्रश्न : सूक्ष्मकृष्टि किसे कहते हैं? उत्तर : बादरकृष्टि से भी विशेष अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को सूक्ष्मकृष्टि कहते हैं। ६५. प्रश्न : अनुकृष्टिरचना किसे कहते हैं ? उत्तर : ऊपर-नीचे के परिणामों में अनुकर्षण अर्थात् क्रम से हीनहीन होने को दिखानेवाली रचना विशेष को अनुकृष्टि रचना कहते हैं। ६६. प्रश्न : मार्गणा किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : किन्हीं विशिष्ट पर्यायों अर्थात् भावों के आधार पर जीवों के अन्वेषण अर्थात् खोज को मार्गणा कहते हैं। उसके चौदह भेद हैं - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार। .मार्गणा प्रकरण में विवक्षित भाव का सद्भाव-असद्भाव दोनों अपेक्षित होते हैं। ६७. प्रश्न : सम्यक्त्वमार्गणा किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : सम्यग्दर्शन/श्रद्धागुण की मख्यता से जीवों के अन्वेषण को सम्यक्त्व-मार्गणा कहते हैं। उसके छह भेद हैं। मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, औपशमिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व और क्षायिकसम्यक्त्व । (प्रथम तीन भेदों का स्वरूप तत्संबंधी गुणस्थानरूप ही है; अत: गुणस्थान अध्याय में देखिये।) “सम्यक्त्व के तो भेद तीन ही हैं। तथा सम्यक्त्व के अभावरूप मिथ्यात्व है। दोनों का मिश्रभाव सो मिश्र है। सम्यक्त्व का घातक भाव महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर सो सासादन है। इसप्रकार सम्यक्त्वमार्गणा से जीव का विचार करने पर छह भेद कहे हैं।" - मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : ३३७ ६८. प्रश्न : औपशमिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं? उत्तर : निज शद्धात्म सन्मख पुरुषार्थी जीव के पांच. छह या सात प्रकृतियों (दर्शनमोहनीय तीन, अनंतानुबंधी चतुष्क) के उपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। • अनादि मिथ्यादृष्टि के ५ प्रकृतियों का और सादि मिथ्यादृष्टि के ७,६ या ५ प्रकृतियों का उपशम होता है। • अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को सर्वप्रथम औपशमिक सम्यग्दर्शन ही प्रगट होता है। ६९. प्रश्न : क्षायोपशमिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्मसन्मुख पुरुषार्थी जीव के पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के क्षयोपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को क्षायोपशमिकसम्यक्त्व कहते हैं। क्षयोपशम- अनंतानबंधी ४ व मिथ्यात्व तथा सम्यग्मिथ्यात्व इन ६ सर्वघाति प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और सदवस्थारूप उपशम तथा देशघाति सम्यक् प्रकृति दर्शनमोहनीय का उदय । ७०. प्रश्न : क्षायिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्मसन्मुख पुरुषार्थी जीव के पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के सर्वथा क्षय के समय में होनेवाले तथा भविष्य में अनन्त कालपर्यन्त रहनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को क्षायिकसम्यक्त्व कहते हैं। क्षायिक सम्यग्दर्शन हमेशा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वपूर्वक ही होता है और भविष्य काल में अनन्त कालपर्यन्त क्षायिकरूप ही रहता है। ७१. प्रश्न : औपशमिकसम्यक्त्व के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो भेद हैं, प्रथमोपशमसम्यक्त्व और द्वितीयोपशमसम्यक्त्व । ७२. प्रश्न : प्रथमोपशमसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : 'प्रथम' शब्द का अर्थ पहली बार नहीं। अनादि अथवा सादि मिथ्यादृष्टि जीव को जब भी औपशमिक सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, उसको प्रथमोपशम-सम्यक्त्व ही कहते हैं।
SR No.008350
Book TitleGunsthan Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size649 KB
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