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________________ २३ हजार ५०० २हजार •प्रथम आठ संस्करण नवम संस्करण (२९ अप्रैल, २००६) पूज्य कानजी स्वामी जयन्ती योग : २५ हजार ५०० १५-१६ २८-२९ ३०-५१ ३०-५१ प्रकाशकीय (नवम संस्करण) गुणस्थान-प्रवेशिका का यह संशोधित एवं संवर्धित रूप गुणस्थान-विवेचन के नवम संस्करण का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। जयपर में आयोजित आध्यात्मिक शिक्षण-शिविर के अवसर पर करणानुयोग का प्रारम्भिक ज्ञान कराने के उद्देश्य से गोम्मटसार के गुणस्थान प्रकरण की कक्षा ब्र. यशपालजी द्वारा ली जाती है। उस कक्षा में बैठनेवाले भाईयों को इस विषय को समझने में जो कठिनाईयाँ आती थीं, उन्हीं को ध्यान में रखते हुए ब्र, यशपालजी ने यह कृति तैयार की है। ब्र. यशपालजी चारों अनुयोगों के सन्तुलित अध्येता एवं वैराग्य रस से भीगे हृदयवाले आत्मार्थी विद्वान हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन में संचालित होनेवाली प्रत्येक गतिविधि में आपका सक्रिय योगदान रहता है। ट्रस्ट के अनुरोध पर आप प्रवचनार्थ बाहर भी जाते रहते हैं। आपने पण्डित टोडरमलजी द्वारा लिखित टीका सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका का सम्पादन कार्य अत्यन्त श्रम एवं एकाग्रता पूर्वक किया है तथा सम्पादन कार्य से प्राप्त अनुभव का भरपूर उपयोग प्रस्तुत कृति की रचना में किया है। करणानुयोग संबंधी इस महत्त्वपूर्ण एवं सरलतम कृति के लिए ट्रस्ट आपका हृदय से आभारी है। ___ गुणस्थान-प्रवेशिका को संशोधित करके जब विस्तृत रूप प्रदान किया गया, तब इसके सम्पादन की आवश्यकता महसूस हुई। इसके लिए पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल से निवेदन किया एवं उन्होंने अपने लेखनादि कार्यों की व्यस्तताओं में से समय निकालकर इसे सम्पादित कर सुव्यवस्थित किया है; एतदर्थ ट्रस्ट उनका हार्दिक आभारी है। ___इस पुस्तक की लेजर टाइप सैटिंग श्री श्रुतेश सातपुते शास्त्री डोणगाँव द्वारा की गई है तथा प्रकाशन व्यवस्था का सम्पूर्ण दायित्व अखिल बंसल ने बखूबी निभाया है। अतः ये दोनों महानुभाव बधाई के पात्र हैं। इस कृति के माध्यम से आप सभी अपने परिणामों को पहिचानकर आत्मकल्याण करें, इसी मंगल भावना के साथ - सौ. इन्दुमति अण्णासाहेब खेमलापुरे डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल अध्यक्षा महामंत्री पताशे प्रकाशन संस्था, घटप्रभा पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर विषयानुक्रमणिका विषय पृष्ठ • प्रकाशकीय आदि १-८ अध्याय पहला ९-२९ • सामान्य प्रकरण ९-१४ मूल्य : २५ रुपये • प्रथमानुयोग का पक्षपाती • चरणानुयोग का पक्षपाती १६-१९ • द्रव्यानुयोग का पक्षपाती २०-२२ • शब्दशाख,अर्थ,कामभोग व अन्यमत का पक्षपाती २३-२७ • शास्त्राभ्यास की महिमा अध्याय दूसरा • महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर अध्याय तीसरा ५२-२८० टाइप सैटिंग : • गुणस्थान-भूमिका त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स • गुणस्थान-परिभाषा ५६-५९ ए-४, बापूनगर, जयपुर • गुणस्थान-विभाजन ५९-६९ १. मिथ्यात्व ७०-८५ २.सासादनसम्यक्त्व ८७-९७ ३. सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र) ९८-१०६ ४. अविरतसम्यक्त्व १०७-१२७ ५. देशविरत १२८-१३९ ६. प्रमत्तविरत १४०-१६१ ७. अप्रमत्तविरत १६२-१७५ मद्रक: ८. अपूर्वकरण १७६-१९० प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड ९. अनिवृत्तिकरण १९१-२०० बाईस गोदाम, जयपुर १०. सूक्ष्मसाम्पराय २०१-२१२ ११. उपशांतमोह २१३-२२४ १२. क्षीणमोह २२५-२३४ १३. सयोगकेवली २३५-२४६ १४. अयोगकेवली २४७-२५३ • गुणस्थान प्रवेशिका के | • सिद्ध भगवान २५४-२६० पाँच संस्करण समाहित ।। २६२-२८० ५२-५५
SR No.008350
Book TitleGunsthan Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size649 KB
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